𝙺𝚊𝚞𝚜𝚑𝚒𝚔𝙸𝚗𝚔   (𝚔𝚊𝚞𝚜𝚑𝚒𝚔𝙸𝚗𝚔)
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Joined 3 September 2020


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Joined 3 September 2020

तूने इश्क़ से आज़ाद किया,
पर मैं तेरी कैद में ही रह गया...

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तेरी यादें
कोई मेहमान नहीं—
वो तो मेरे कमरे की
स्थायी रिहाइशी बन गई हैं।

मैं उन्हें निकालना चाहता हूँ,
पर हर बार
वे मेरे भीतर
एक नया कोना बना लेती हैं।

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तेरे लिखे हुए ख़त
अब भी दराज़ में रखे हैं।
स्याही सूख चुकी है,
पर हर शब्द
अब भी मेरी नब्ज़ में धड़कता है।

काग़ज़ पुराना हो गया,
मगर उन लफ़्ज़ों की गर्माहट
आज भी
मेरे सीने को जला देती है।

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इंसान वक़्त का है, भगवान हर वक़्त का...

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हाँ, मैं गिरा हूँ बार-बार,
पर यही तो फ़ायदा है—
अब उठने का हुनर
किसी किताब से नहीं,
ज़िन्दगी से सीखा है...

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तेरे दिए हर निशान में
एक जलती हुई कहानी छुपी है,
जिसे पढ़ते-पढ़ते
रात भी सुलग उठती है...

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तूने मुझे नज़रअंदाज़ किया,
अब देख—तेरे ही आईने में
सिर्फ़ मैं दिखता हूँ...

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लोग मंज़िल पूछते हैं,
मुझे रास्ते की परवाह नहीं—
मैं वहाँ चलता हूँ
जहाँ नक्शे भी डर कर मिट जाते हैं...

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तेरे बाद

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बारिश में काग़ज़ की कश्ती, हँसी की वो बात,
अब दूर है तू, बस रह गई यादों की रात..

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