Kaushik Nagaraj   (बंदेया)
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Joined 23 April 2017


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Joined 23 April 2017
19 NOV 2020 AT 22:16

अभी ज़िंदा हूं मैं मरा नहीं,
फिर तन्हाई में क्यूं पलते हो?

अभी नज़रों से मैं हटा नहीं,
फिर रश्के–ए–मोहब्बत क्यूं करते हो?

मेरे सीने में कोई रंज नहीं,
फिर रंग–ए–जुदाई क्यूं भरते हो?

तेरे ख्वाबों से भी गया नहीं,
फिर नींद गवाएं क्यूं बैठे हो?

अभी ज़िंदा हूं मैं मरा नहीं,
फिर रंज रगों में क्यूं भरते हो?

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18 NOV 2020 AT 0:13

Who do I speak to when I, don't want to tell.
Who do I listen to when I, don't want to hear.
Who do I call out when I, don't want to meet.
Who do I think about when I, don't have any thoughts
Who do I call mine even when I, don't want to be mine.
Who do I want when I, won't be mine.

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10 OCT 2020 AT 23:30

कौनसी रातें, कौनसी यादें,
किस पे आहें भरते हो?
ना नाम लिया, ना नाम दिया हैं,
फिर क्यों बातें करते हो?

खुद ही खुद में ठोकर खा के
चलते फिरते रेहते हो,
ना चाल दिखे, ना हाल दिखा है,
फिर क्यों बातें करते हो?

आंखों में हैं बंजर रातें,
ख़्वाब क्यों उसमें बोहते हो?
ना नींद मिलें, ना चैन मिला है
फिर क्यों बातें करते हो?

राहों में है तन्हा मंज़र,
हाथ छुड़ाकर भागें हो,
ना साथ मिलें, ना हाथ दिखा है
फिर क्यों बातें करते हो?

कौनसी रातें, कौनसी यादें
किस पे आहें भरते हो?

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10 MAR 2019 AT 11:42

काज एसो कीजिए, के नाम सदा रह जाएं,
नाम एसो कीजिए, के काज लिए हो जाए।
नीति ऐसी राखिये, जो मन को सबके भाये,
रीति एसो कीजिए, के नाम हरि को भाय।।

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20 NOV 2018 AT 13:48

चवन्नी अठन्नी कमाते थे,
पाई पाई का हिसाब लगाते थे,
रुपया १० कमा पूंजी बताते थे,
एक रुपए में घर चलाते थे,

अभ

उस ज़माने से इस ज़माने में बदले है हम,
पूंजी नहीं किष्ते भरते है हम,
ज़रूरतें ज़िंदगी की पूरी नहीं होती,
पर एय्याशी करते है हम,
महीने से जल्दी तो तनख्वाह गवाते है,
१०० कमा २०० उड़ाते है हम
खाने को घर में राशन नहीं,
दोस्तों संग house party करते है हम।

उस ज़माने से इस ज़माने में बदले है हम।

_बंदेया।

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14 MAR 2018 AT 21:58

कहीं जो तुम्हे बांध दू तो खुल जाना तुम।।
फिर आज़ाद परिंदे से खुले आसमान में उड़ जाना तुम।
कहीं जो तुम्हे बांध दूं तो।।।

यूं खामियां मुझमें हजार होंगी, पर उनसे दर ना जाना तुम।।
हक से दात कर मुझे मार पीट कर सुधार देना तुम।
उन्हीं घाव पे मरहम लगा के फिर हस भी देना तुम।।
कहीं जो तुम्हे बांध दू तो खुल जाना तुम।

यूं मेरी हर नादानी से परेशान ना होना तुम।।
बचपना है मेरा यह मान कर समझा देना तुम।

हाथ चटक कर साथ छोड़ कर बिचद्द ना जाना तुम
कहीं जो तुम्हे बांध धू तो खुल जाना तुम।

जगड़ जो लूं तुमसे तो रूठ ना जाना तुम
साथ बैठ के हाथ पकड़ के जगड़ लेना तुम।।
पास तुम्हारे आऊ तो दूर ना जाना तुम।
कहीं जो तुम्हे बांध दूं तो खुल जाना तुम।

जवाब कभी ना दे सको तो बतला देना तुम।।
ज़िद मेरी है यह समझ कर झुक ना जाना तुम।
रिश्तों के दोर पे जो लड़खड़ा दूं मै तो हाथ थाम लेना तुम।।
कहीं जो तुम्हे बांध दू तो खुल जाना तुम।

हक कभी जो अदा करू तो सेहेम ना जाना तुम।।
मुंह फेर कर दिल दुखा कर खो ना जाना तुम।
सुखून हो मेरी यह जान कर मुस्कुराना तुम।।
कहीं जो तुम्हे बांध दू तो खुल जाना तुम।

जब साथ तुम्हारे में बैठूं तो हाथ थाम ना तुम।।
कस के मुझे गले लगा के छोड़ ना देना तुम।
उसी पल में बांध के खुल ना जाना तुम
कहीं जो तुम्हे बांध दू तो।।

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8 FEB 2018 AT 22:16

शब्दों में अपने उसको पिरोंहना चाहता हूं।।
आज फिर उसको में कागजों पें देखने चाहता हूं।

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8 FEB 2018 AT 22:10

आज फिर मै अपनी ज़िन्दगी से मिला।
अपने ही घम को आज फिर जिया हूं।।
यूं तो फलसफा ज़िन्दगी में चलता रहेगा।
आज फिर हर घम को हस के जिया हूं।।

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2 FEB 2018 AT 18:23

Milenge aaj phir tere shringaar k bahane..
Dekhunga aaj phir tujhe tere shringaar k bahane..

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31 JAN 2018 AT 21:39


बात उसकी हो तो हर बात सही लगती है।।
खुदकी तो हर बात गलत लगती है।

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