सुनहरी सी एक चिड़ियाँ थी,
नाम उसका गौरैया था।
एक दिन उसे एक पेड़ मिला,
उसकी डाल पर उसे अपना ही घर दिखा।
अपने सपनो का घर,
तिनका तिनका कर उसने घर को जोड़ा,
जोड़ते जोड़ते उसका घर पूरा हुआ।
सिर्फ घर न था वो,
पूरी दुनिया थी वो उसकी,
अपनी पूरी पूंजी वही थी उसकी।
पर एक दिन किसी अनजान वजह से,
उसको वो घर छोड़ना था,
दुख तो बहुत हो रहा था उसको,
पर वो भी क्या करती उसे भी अपना काम पूरा करना था।
छोड़ना चाहती तो नही थी वो,
पर छोड़ना जरूरी था।
पेड़ को भी लगाव हो गया था उससे,
वो भी मना कर रहा था उसे जाने से,
और पत्ते भी माना कर रहे थे जाने से,
पर सबको पता था कि जाना जरूरी था।
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