कौशिक   ('कौशिक')
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Joined 20 October 2017


Joined 20 October 2017
15 SEP 2023 AT 22:04

इश्क़ हुआ पहले ही पहल था उसके बाद तिज़ारत की
भूलना था पहले को तो फिर दूसरी हमने मोहब्बत की

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12 SEP 2023 AT 23:23

घर में रखे हैं बस यही असबाब हमारे
यादें किसी कोने में कहीं ख़्वाब तुम्हारे

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12 SEP 2023 AT 11:52

अपनी किस्मत को भी अब क्या आजमाना छोड़ दें
या भवर के डर से ही कश्ती बनाना छोड़ दें

अपने हिस्से तीरगी है इसको ही सच मान के
हम हवा के डर से ही दीपक जलाना छोड़ दें

बेघरी ओ बेठिकाना ही तो मुस्तकबिल में है
सोच के बस ऐसा हम भी घर ही जाना छोड़ दें

जाबजा है शोर दर्द ओ गम का चारो ओर तो
दर्द के हो जायें हम और मुस्कुराना छोड़ दें

ताइरों के जैसे कौशिक जिंदगी आसां नहीं
इक सजर कट जाये तो फिर आशियाना छोड़ दें

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12 SEP 2023 AT 2:18

आ तो गयें महफ़िल में बड़ी ख़ामुशी के साथ
अब कैसे बितायें ये घड़ी ख़ामुशी के साथ
कल रात मुकाबिल थी तेरे ग़म से तेरी याद
हैरान हूँ क्या ख़ूब लड़ी ख़ामुशी के साथ

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10 SEP 2023 AT 18:19

दिल का दरवाजा खुला रखता तो हूँ मैं लेकिन
इसका मतलब नहीं के कोई भी चला आये

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8 SEP 2023 AT 2:45

तेरी तसवीर जब रखता हूँ नजर के आगे
आँख जाती नहीं है नाफो कमर के आगे

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7 SEP 2023 AT 14:20

रौशनी को कोई तरक़ीब निकाली जाये
क्या जरूरी है कि फिर रात ये काली जाये
उसके जाने से क्यों नाशाद करें दिल अपना
यार अब चल कहीं सिगरेट जला ली जाये

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2 SEP 2023 AT 19:00

महकते फूल सारे सूख के अब झड़ रहे हैं
तुम्हारी याद के पन्ने पुराने पड़ रहे हैं

लिखा क्या है मिरी लौहे जबीं पर क्या बतायें
तुम्हें पाने को मुस्तकबिल से कितना लड़ रहे हैं

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1 SEP 2023 AT 19:50

कोई फ़रेब-ओ-छलावा नहीं करना मुझको
रूहानी इश्क़ का दावा नहीं करना मुझको
फटे हैं पैराहन और सर पे कोई छत भी नहीं
रईसी का भी दिखावा नहीं करना मुझको

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30 AUG 2023 AT 11:05

दीप से दीप जलना सहल तो नहीं
तीरगी का यही एक हल तो नहीं
मयकशी को मेरी देख तुम भी कहीं
मान बैठे हो मुझको अज़ल तो नहीं

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