गुज़री में जब उस गली से,
कुछ अपना सा लगा,
बेचैनी को मन में लिए,
दस्तक दी जब उस द्वार पर,
कोई एक सपना सा लगा,
बरसों से एक आशा मन मैं समायी थी,
जब दुनिया ने अपने रंग दिखाए,
किताबें मुझे बिखरी नज़र आयी थी,
फिर उसकी कही हर बात याद आयी थी,
चेहरे पर उसके झुर्रियों का साया था,
आखें नम थी, सायद उसे मेरा बचपन याद आया था,
उस लाल बिंदी को देख,
मैं सब कुछ भूली गई,
चेहरे की उस मुस्कान से,
मेरी सारी थकान मिट गयी,
जो कहीं खो गई थी,
वो आज उभर के आयी है,
' माँ ' को देख कर,
मेरी मुस्कान फिर लौट आयी है। — % &
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