ए ज़िन्दगी तूँ कितना हर बार आजमाएगी
अभी और कितना मुझे समझदार बनाएगी
कोई शिकवा मुझे भी रहा होगा तेरे रवैए से
जो मेरे गमों का मुझे ही खरीददार बनाएगी
कुछ फैसले थे कि ज़मीर ने गवारा न किये
मेरा भी क्या गिरा हुआ किरदार बनाएगी?
कभी लुटा दिए आँसू मेरी आँख ने बेवजह
तो क्या फिर सियासत का बाज़ार लगाएगी
मौत तो यूँ ही बदनाम है बेवजह दुनिया में
अरे ज़िन्दगी ही तेरा जीना दुश्वार बनाएगी।
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भूले बिसरे वक्त को हर वक्त क्यों याद करते हो
जो अपना नहीं उसे पाने की फ़रियाद करते हो
छोड़ो, तुम भी बस अपना वक्त बर्बाद करते हो।
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अब खोने को कुछ बाकी नहीं
बेशक पाने को पूरा जहान है
इसी हौंसले से भरी उड़ान है
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आज की रात आसमां पर ये चाँद यूँ छाया है
जैसे माँ की गोद में सुकून का लम्हा पाया है।
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..... बचपन की यादें......
मेरे ख्यालों के दरीचों में रखा हुआ है इक सुख़न
शिद्दत से उसमें संभाले रखा हुआ है मेरा बचपन
कभी किसी का जाना हो तो मेरा पैगाम भी देना
मेरे ननिहाल से निकला नहीं अब तलक मेरा मन
ना भूलती हैं वो गलियाँ कच्ची मिट्टी की बेशक
गिरते पड़ते जहां पर संभलना सीखे थे मसलन
झुर्रियों भरे हाथों को थाम गाँव भर में घूम आना
मामा के काँधे बैठ मिटती देखी मासूम की थकन
छोड़ गई वो यादें कुछ अनकही अनसुनी फ़रियादें
बस यही सोच सोच कर अब बुझा बुझा सा है मन।
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अंधेरों की स्याही से बेशक सुकून तो लिख दिया
मुस्कुराते हुए लबों ने मगर आँखों को तर दिया।
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फ़लक से चाँद का यूँ इतराना
अंधेरों के पहलू में निखर जाना
ख़ामोश राहों का अदब लगा है
हवा का यूँ छूकर निकल जाना।
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बेहतर हो ग़र इतना सा एहसान हो जाए
ख़ुदा मिले बहुत कोई तो इंसान हो जाए
रहमदिली मयस्सर नहीं आज के दौर में
दरिया समंदर से मिले तो हैरान हो जाए
टूटना पड़ता है चंद अल्फाज़ पिरोने को
बिन एहसास कैसे तजुर्बा बयान हो जाए
एक आईना और उसमें रोशन एक अक्स
फक्त दिलों में झांकना यूँ आसान हो जाए
इरादा तो नहीं था ख़्यालों की अदायगी का
कैसे लिखूँ कि ये लिखना आसान हो जाए।-
अश्क़ आँखों से शिकवा करने लगे
दर्द की इक और दास्तां कहने लगे
तुम्हारी नज़रों में हम कितने फ़िज़ूल
बात बात पर नज़रों से गिरने लगे।।-
कोई लम्हा मेरे हौसलों की तर्जुमानी करता तो देखते
टूटे ख्वाबों का रंज पल भर करने की खातिर न रुका
यूँ जिंदादिली से जीने की हिम्मत करता तो देखते।-