Kaur Dilwant✍️   (Kaur D✍️)
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Joined 25 January 2020


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Joined 25 January 2020
3 APR AT 23:46

आँखों में अब ख्वाब नहीं
ख़्वाहिशों के सैलाब नहीं।
तसव्वुर की बग़ल में बैठे
तजुर्बों का हिसाब नहीं ।
कट रही है.. ज़िंदगी मगर
ज़िंदगी ज़िंदाबाद... नहीं ।
मौक़ा परस्त दुनिया में
सीधे की तो औकात नहीं।
रंग काला तो बदनाम है बस
किस लिबास पे लगा दाग नहीं।
आँखों में बसी रात रतजगी
निगाहों में अब कोई ताब नहीं।

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3 APR AT 23:22

मुझे मेरे हिस्से का आसमाँ चाहिए
बहारों से लबरेज़ गुलिस्तांँ चाहिए

रहने दो सलाहों का सिलसिला अब
साथ में चलने वाला कारवाँ चाहिए

सुलगते अरमानों को हवा दी बहुत
मिटना नहीं अब नामों निशाँ चाहिए

पानी का बुलबुला है ज़िंदगी अगर
किसलिए बुलबुले को जहां चहिए

गहरा समंदर ओर गहराता जा रहा
लहरों के उठने के लिए तुफां चाहिए।

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3 APR AT 21:58

सरसराती हवाओं ने होले से फुसफुसाया
नीले आसमांँ पर सतरंगी परचम लहराया

रुबरु थी शबनम फूलों पर बिखरी बिखरी
है शबाब कितना महताब से शब ने चुराया

खिड़की से ताकती निगाहें टिकी राहों पर
जिसका इंतज़ार वो अब तलक ना आया

दुनियादारी के सहरा में तलाश है सुकून की
अंधेरे में तो साथ छोड़ देता अपना ही साया

कब किसने कितना ज़लील किया छोड़ो भी
इन्सानों की बस्ती में ख़ुदा भी ठहर ना पाया।

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2 APR AT 22:16

सोच समझ कर किसी से रिश्ते खास रखना
बुरा वक्त भी बीत जाता ज़रा विश्वास रखना

नज़र में खटकते हों तो भी नज़र में रखकर
खिलाफ चल रहे लोगों को आस पास रखना

गुरुर से भरे चेहरे अक्सर पहचाने ही जाते हैं
खुद्दारी को बनाकर तुम पहचान खास रखना

कभी आना ख़्वाबों के दरीचों पर दस्तक देने
ठिठुरती उम्मीदों की बग़ल में पलाश रखना।

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2 APR AT 6:32

और कितना सब्र का इम्तिहाँ होगा
ठहरे पानी में भी छुपा तुफां होगा।
‌ जुबाँ है ख़ामोश किसी वजह से मगर
कभी तो ये दर्द आँखों से बयाँ होगा।
बेशक ज़मीन से जुड़े हुए लोग हैं हम
छूना यहीं से मुझे मेरा आसमाँ होगा।
एहसास की बात करते हो तो सुनो
ये लिखना इतना भी ना आसाँ होगा।

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22 FEB AT 23:44

..... कुदरत का खेल.....
हर सवाल का ज़वाब ज़रूरी नहीं होता
खुद्दारी का मतलब मगरुरी नहीं होता ।

मतलब की दुनिया से यूँ तो ताल्लुक रहे
हर हाँ का मतलब पर जी-हजूरी नहीं होता।

तुम्हें अपनी जीत हो मुबारक हमें हार सही
बादलों में आफताब कभी बेनूरी नहीं होता

कुदरत का खेल है ये सारा क्यूं कर कहिए
हर खेला दाँव रास आए ज़रूरी नहीं होता।

बेटियों को विदा करने की सोच भी न आती
काश कि ये रिवाज़ गर मज़बूरी नहीं होता ।

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18 FEB AT 23:17

*****अपना-अपना किरदार****
जहां की मजलिस में सबका अपना-अपना है किरदार
बेशुमार हैं किस्से कहानियाँ और क़लमकार हैं बेशुमार

मुसाफिर आते जाते रहते किसको मयस्सर रहना यहाँ
कुछ पल का पड़ाव ज़िंदगी फिर रुख़्सती को हैं तैयार।

इक उम्र का हिसाब रखना आसान नहीं किसी के लिए
दिन रात जमा करता दौलत बेशक दिन बचे हैं दो चार

हक़ीक़त से सामना करना तो मुश्किल रहेगा थोड़ा सा
हसीं ख़्वाबों की ताबीर का अभी उतरा नहीं है खुमार।

वक़्त की मार से कहाँ कोई बच सका है आज तलक
बस वक़्त रहते ना वक़्त पर हुए हो किसी से वफ़ादार

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15 FEB AT 22:44

_____रहें ना दिलों में दूरियाँ____

नज़र भर के देखिए नज़रों का इंतज़ार
थोड़ा ही सही आ जाए दिल को करार

दूरियाँ भी मलामत हैं,परेशाँ न कीजिए
दिल-ए-बेकरार को थोड़ा सुकूँ दीजिए।
खियाबाँ के मुस्कुराने का सबब है बहार
नज़र भर के देखिए नज़रों का इंतज़ार।

काँटों को यूँ हटाने का गुनाह ना कीजिए
गुलों से ज़रा पहले इज़ाज़त तो लीजिए
चमन सहला रहा इन्हें साथ में बार-बार
नज़र भर के देखिए नज़रों का इंतज़ार।

महफ़िल में आने वाले जाया भी करते हैं
कुछ चले जाएँ तो कुछ आया भी करते हैं
रहें ना दूरियाँ दिलों में ए दिल-ए-ताबदार
नज़र भर के देखिए नज़रों का इंतज़ार।।

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14 FEB AT 22:05

मेरा इश्क़ भी वतन मेरा महबूब भी वतन
मैं रहूँ ना रहूँ, मगर खिला रहे मेरा चमन।

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12 FEB AT 22:06

मुझे आसमाँ की गहराइयों में उतरना पड़ा
रात के अंधेरों से लड़कर यूँ चमकना पड़ा।

कभी चाँद ने देखा ही नहीं मुझे इस भीड़ में
खुद के वजूद को टूटकर साबित करना पड़ा।

ओर मैं टूटा तो फ़रियादों का सिलसिला छिड़ा
पल पल सफ़र में हिसाब यह भी रखना पड़ा।

दादी की कहानियों में या किताबों के सफ़ों में
बच्चों की मुस्कुराहटों में घर मुझे करना पड़ा।

अंज़ाम कायनात में हर शै का मुकर्रर किया है
हक़ ख़ुदा के इंसाफ़ का यूँ ही अदा करना पड़ा।

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