सहरा में खिले जो गुल उन्हें खुशबू-ए-अब्र की तलाश है
किसी के नसीब में तस्कीन किसी को सब्र की तलाश है।
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गुनहगार नहीं थे मगर दुनियादारी का क्या कीजे
सच चढ़ता सूली पर ,यहाँ हर ज़ुर्म की माफ़ी है।-
एक वादा प्यार का मोहब्बत के इज़हार का
रंँग बदलती इस दुनिया में तेरे मेरे ऐतबार का
वादा-ए-इश्क है ये उम्र भर साथ निभाने का
उल्फ़त में होती हुई मीठी मीठी तकरार का
शाम-ए-रँगीन में आफ़ताब का ज़लाल जैसे
हसीं रात में किस्सा कोई तारों की कतार का
बहार ने सहला दिया खियाबाँ को मुस्कराकर
वादा ख़्वाबों के खिले हुए बेहतरीन संसार का
तपिश है जैसे आतिश की चिंगारियों में रहती
वादा है तुझसे क़यामत तक के इन्तज़ार का।।-
दरखतों से टूटकर गिर रहे हैं पत्ते अभी
पतझड़ की मौजूदगी का असर ही तो है
बिछौना बिछा कर कुदरत सरसराहट का
सनसनाती रातों का अदब करती तो है
हाँ इंतज़ार में हैं सुरमई शामों के पहरे
गहराते हुए अँधेरों की रँगत हरी तो है
मुरझाए हुए हैं फूलों के चेहरे बागबाँ में
खिज़ां ज़मीं पर अभी अभी उतरी जो है
बहारों के आते ही मंज़र बदल जाएगा
उम्मीदों की महफ़िल अभी सजी तो है
मुकम्मल होगा फ़लसफ़ा इंतज़ार का भी
ये दास्तान अभी अभी शुरू हुई तो है।।
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इक रोज़ तन्हा बैठे थे हम
बस तेरे ही ख्यालों में गुम
कुदरत के आगोश में सुनी
कच्ची सी शाम की सिसक
अँधेरे की सरमाई का खौफ
दिन से बिछड़ने का भी ग़म
आसमाँ की गोद में सितारे
अठखेलियाँ करते हुए सारे
चाँद के घर में मेहमान जैसे
भर रहे वफ़ादारी का थे दम
बस कुछ यूँ ही खड़ी बेबसी
मुस्कुराकर मुझे ताकती रही
गले से लगाकर मुझे फिर से
देके गई वो तन्हाई का मौसम
इक रोज़ तन्हा बैठे थे हम
बस तेरे ही ख्यालों में गुम
तेरी यादों की महफ़िल से
चुरा लाए कुछ एक पल हम।-
( त्रिवेणी / एक प्रयास )
करवट बदलता हुआ मौसम इन्सान की फ़ितरत का सानी
कहीं सच और झूठ का फैसला भी सहूलियत से होने लगा
नसीब कहिए कि, ग़रीब को तक़लीफ से मोहलत ही नहीं ।
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(मज़बूरी और माँ)
जब जब भी हुआ है सामना मज़बूरी और माँ का
हर पैगाम-ए-हार को मुँह की खाकर लौटना पड़ा
ग़रीबी की दहलीज पर खड़ी बेबस या लाचार सी
हौंसले की डोर थामे ज़िंदगी जीने निकल वो पड़ी
बच्चों के लिए हर तक़लीफ का है कर रही सामना
तभी तो तक़लीफ को मुँह की खाकर लौटना पड़ा
ख़ुद ख़ुदा भी मायूस होगा देखकर हालात इन्साँ के
कितना इतमिनान फिर भी दिखता चेहरे पर माँ के
गोद में पल रही उम्मीद और ज़ज़्बा है कितना बड़ा
तभी तो मायूसी को मुँह की खाकर लौटना पड़ा।-
होना तो ये चाहिए कि तुम्हें तुम्हारे जैसा ही कोई मिले
कोई तंगदिल शख़्स तुम्हारी ज़िंदगी का भी हिस्सा बने
गोया कोई तो ऐसा जो बिल्कुल तुम्हारी ही परछाई लगे
सिलसिला-ए-सवाल बनकर मुश्किल सा इम्तिहान बने-
(......शायद.....)
शायद किसी मोड़ पर मुस्कुराहट से मुलाकात हो
सुकून का पता मिले और खुशियों की बरसात हो।
शायद ग़रीब के घर में भी उम्मीदों का उजाला हो
हिम्मत की हर सुबह और कामयाबी भरी रात हो।
माँओं की बीनाइयाँ बच्चों की नज़र उतारती रहें
इक हुजूम खैरियत का हर छत के नीचे तैनात हो।
रिमझिम बूँदें खुशनसीबी की सौगात बाँटती रहें
तौफ़ीक़ ऐसी रहे कि किरदारों में हक़ की बात हो।
अपना ज़र्फ़ अक्ल का मैला होने ना पाए कभी भी
ख़ुदा की रहमत से गुल-अफ़शाँ कुल कायनात हो।-