एक बचपन का कभी जमाना था,
जिसमें खुशियों का खज़ाना था
चाहत चाँद को पाने की थी,
पर दिल तितली का दीवाना था...
खबर न थी कुछ सुबह की,
न शाम का ठिकाना था...
थक कर आना स्कूल से,
पर फिर भी खेलने जाना था...
माँ की कहानी थी,
परियों का फसाना था...
बारिश में काग़ज की नाव थी,
हर मौसम सुहाना था...
रोने की वजह न थी,
न हँसने का बहाना था...
क्यों हो गए हम इतने बड़े,
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था...
वो बचपन का जमाना था..-
When BHAKTI enters FOOD,
FOOD becomes PRASAD,
When BHAKTI enters HUNGER,
HUNGER becomes a FAST,
When BHAKTI enters WATER,
WATER becomes CHARANAMRIT,
When BHAKTI enters TRAVEL,
TRAVEL becomes a PILGRIMAGE,
When BHAKTI enters MUSIC,
MUSIC becomes KIRTAN,
When BHAKTI enters a HOUSE,
HOUSE becomes a TEMPLE,
When BHAKTI enters ACTIONS,
ACTIONS become SERVICES,
When BHAKTI enters in WORK,
WORK becomes KARMA,
AND
When BHAKTI enters a MAN,
MAN becomes HUMAN-
बेटियो कुछ बुनना हो ,
तो सपने बुन लो।
भागो तुम उनके पीछे , कोशिश करके मुटठी मे भर लो|। फिसल जाये तो गम न करना, फिर से सहेजो फिर से समेटो, बाधाओ से मत घबराओ। टुटो बिखरो तो फिर जुड जाओ ।। बेटियो तुम अपने सपने बुन लो| बेटी दिवस की शुभकामनाऐ 🙏🙏🙏-
दिल के पास दिमाग नहीं होता...
मुझे कभी ये समझ नहीं आता कि
जो दर्द की वजह होती है, वही क्यों दर्द की दवा भी होता है,
क्यों रोने के लिए भी बस उसका कंधा न होने का मलाल होता है,
उसके इतनी दूरियाँ बनाने पर भी, क्यों हर पल उसी का इंतज़ार होता है,
जबकि साथ बिताए अच्छे पलों वजूद कम और बुरे पलों का एहसास साया बनकर साथ खड़ा होता है,
पर इतने सब के बाद भी हमें उसी शक्स के गले लगना होता है,
क्योंकि ये दिल है, और दिल के पास दिमाग नहीं होता है।।-
कभी ठंड मे ठिठुर कर देख लेना।
कभी तपती धूप मे चल कर देख लेना।
कैसे होती है मुल्क हिफाजत की।
सरहद पर खडे जवानौ को देख लेना।। ❤️🇮🇳
Happy Independence day♥️❤️-
अगर तुम्हारा साथ तो मैं सब कुछ कर जाऊंगा।।
“अगर तुम्हारा साथ तो मैं सब कुछ कर जाऊंगा।।
कभी तुम साथ चल देना, कभी मैं तुम्हारे लिए ठेहर जाऊंग,
बस तुम हाथ पकड़ लेना, मैं मीलों तक पेदल चल जाऊंगा।
बिन बोले ही समझ जाना कुछ बातें, क्योंकि शायद उन्हें मैं कभी कह नहीं पाऊंगा,
और तुम गले लग लेना, बाहों में मैं खुद ही भर जाऊंगा।
अगर लड़ू तुमसे तो डाँट देना, मैं बात को आगे नहीं बढ़ाऊँगा, और साथ दे देना ज़िंदगीभर क्योंकि,
मुझे पता है मैं सबसे लड़कर ही तुम्हे अपना बना पाऊंगा।
जो देखे हैं ख्वाब तुम्हारे साथ ज़िंदगी बिताने के, तुम देखना मैं उन्हें सच कर दिखाऊँगा,
धीरे-धीरे तुम्हारे संग मैं ज़िंदगी की यादें बनाऊंगा, और अपनी हर ख्वाइश को तुमसे पूरा करवाउंगा।
हफ्ते में एक बार तुम्हे अपने हाथों से खाना खिलाऊंगा,
मगर तुम साथ दे देना तभी मैं ये सब पूरा कर पाऊंगा।। “
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बेटियां आम नहीं, खास होती है...
बेटी की मोहब्बत को कभी आजमाना नहीं,
वह फूल है, उसे कभी रुलाना नहीं,
पिता का तो गुमान होती है बेटी,
जिंदा होने की पहचान होती है बेटी,
उसकी आँखें नम ना होने देना,
उसकी ज़िंदगी से कभी खुशियाँ कम न होने देना,
उंगली पकड़ कर कल जिसको चलाया था तुमने,
फिर उसको ही डोली में बिठाया था तुमने,
बहुत छोटा सा सफर होता है बेटी के साथ,
बहुत कम वक़्त के लिए वह होती हमारे पास,
असीम दुलार पाने की हकदार है बेटी!
समझो ईश्वर का आशीर्वाद है बेटी!!
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Being yourself...
I like myself as I am,
I accepted myself as I am,
I love the way I live,
I love the way I speak,
I love my personality which I have,
I love my achievements,
I love my flaws,
I love my anger,
I love everything about me because that makes me,
That makes me complete,
I don't care what people think of me because don't want to change their thoughts, it makes me stronger again and again.
That makes me perfect,
That's why I am me.
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" प्रिया- प्रियतम प्रेम "
श्याम एकदिन हँसकर बोले सुनो राधिका प्यारी,
आज बताओ, मैं सुंदर या तुम अति सुंदर नारी ?
असमंजस में पड़ी राधिका कौन अधिक रुचिकारी,
दिन जैसी सफेद उजली में श्याम रात अंधियारी।
मैं गोरी माखन सी कोमल श्याम सुरतिया कारी,
पर कैसे कह दू मैं प्रियतम कारी सूरत तिहारी।
हंसकर बोली जगत सुंदरी सुनो बात बनवारी,
मैं कच्चे फल सी सफेद तुम पकी जामुनिया प्यारी।
सुन राधा की चातुर बतिया मगन हुए त्रिपुरारी,
बोले सुन बृजभान दुलारी तुम अति सुंदर नारी।
तुम ही जगत सुंदरी मायामाया, तुम त्रिलोक में न्यारी,
जिस जिह्वा पे नाम तेरा वो मुझे है सबसे प्यारी।।
"जय जय श्री राधे श्याम!"-
वो हॉस्टल के दिन भी क्या दिन थे...
जहाँ चार यार साथ थे...
हाथों में एक दूसरे के हाथ थे...
सबके अलग अलग अंदाज थे...
वो हॉस्टल के दिन भी क्या दिन थे...
जहाँ हर त्योहार में अलग रंग हो...
त्योहार मनाने के अलग ढंग हो..
सबमें एक उत्साह और उमंग हो...
सब एक दूसरे के संग हो...
वो हॉस्टल के दिन भी क्या दिन थे...
जहाँ हर रोज़ नये खेल खेले जाए...
जहाँ हर गंभीर चर्चा भी, रंगीन बना दी जाए...
जहाँ ना अच्छा लगने वाला मेस का खाना, भी स्वादिष्ट लगने लग जाए...
वो हॉस्टल के दिन भी क्या दिन थे...
"वो हॉस्टल के दिनों का था कुछ ऐसा अंज़ाम...
जहाँ हर शाम का था एक नया पएगाम।।"
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