तुम्हें लिखता हूं तो लफ्ज़ हो तुम तुम्हें सोचता हूं तो ख्याल हो तुम। तुम्हें मांगता हूं तो दुआ हो तुम तुम्हें पूछता हूं तो सवाल हो तुम। तुम्हें कहता हूं तो बात हो तुम। तुम्हें तरसता हूं तो बरसात हो तुम तुम्हें पढ़ता हूं तो शेर हो तुम। सच कहूं तो मोहब्बत हो तुम।
बेईमानी अब आँखों की पानी चुराने लगी, नामर्दी इंसानों की जवानी चुराने लगी, हिन्द वालो तुम ये बैठ कर सोचना जरूर कभी बर्मा से कन्धार तक हुकूमत थी आज तिनके में क्यों लड़खड़ाने लगी