रूतबा जीत का बदल गया, जब बात हौसलों की हुई।
खड़ा था उस और किनारे,जब बात अपनो की हुई।
महफिल सजी थी परायों की ,लेकर जीत का पैगाम।
हमने अपना संघर्ष चुना, लेकर अपनो का फरमान।
हमारी चार दिन की हार,उनकी महीनों की जीत से बड़ी थी।
हौसला बेमिसाल, आंखों में तुफान, बजूओं में जान बड़ी थी।
वो जशन मनाते रहे ,हमने परायों को अपना बनाया।
वो झूठी शान दिखाते गए,हमने अपनो को ताज बनाया।
कुडसी भले तुम्हारी हुई, राज अपनो का होगा।
सत्ता पर भले कोई विराजे,पर ताज अपनो के सिर ही होगा।
पर ताज अपनो के सिर पर ही होगा।।।।।।
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