किताबें जलाना सीख रहा हूँ,
मैं आग बुझाना सीख रहा हूँ,-
एक छोटा सा नाम
कार्तिक शर्मा।
यूँ रातों में जो तुम ख़्वाब लिखा करते हो,
उनकी अंगड़ाई पे आदाब लिखा करते हो,
ख़ुद को शायर समझने की न तुम भूल करो,
तुम वो पागल हो जो बेताब लिखा करते हो,-
दिल-ए-करार आसमान का गुम सा होता,
चाँद गर जमीन पर होता तो तुम सा होता,-
एक उम्र जब गुज़री, तब मोहब्बत हुई उन्हें,
बात जब बिगड़ी, तब मोहब्बत हुई उन्हें,
नाम ले के उनका, साँसे रोक ली हमने,
जान जब निकली, तब मोहब्बत हुई उन्हें,-
मेरे एक दिन बिछड़ने पर तेरा श्रृंगार न सोए,
तेरे आँखों का वो काजल तनिक भी धार न खोए,
जिस दीवार से लगकर खड़े थे उस दिन हम दोनों,
तू उस दीवार से कहियो, वो मेरी याद में रोए,-
मैं भी किसी शहर का बाज़ार ही तो हूँ,
जरूरत खत्म हुई तो, तमाशा ख़त्म मेरा,-
क्या फिर भी इश्क़ निभा पाओगी ?
क्या फिर भी प्यार जता पाओगी ?
जब तुमको आगुंठन में कर,
मैं गीत लिखूँगा उसकी ख़ातिर,
जब तुमको बस बाहों में भर,
संगीत लिखूँगा उसकी ख़ातिर,
जब यूँ हीं तुम्हें बुलाते वक़्त,
नाम उसका जुबाँ पर आएगा,
फिर आँखे नम कर लोगी तुम,
और शरीर शिथिल हो जाएगा,
इतना सब कुछ देखकर भी तुम,
क्या खुद को ज़हर पिला पाओगी ?
क्या फिर भी इश्क़ निभा पाओगी ?
क्या फिर भी प्यार जता पाओगी ?-
क्या फिर भी इश्क़ निभा पाओगी ?
क्या फिर भी प्यार जता पाओगी ?
जब वक़्त के पथरीले रस्तों पर,
तुमको दूर तक जाना होगा,
अकेले मन कहाँ लगता है,
एक साथी भी ले जाना होगा,
बस बात तुम्हारी रखने को,
मैं साथ तुम्हारे आ जाऊँगा,
और तुमसे आँखे मिलने पर
मैं झूठा ही मुस्का जाऊँगा,
जब मेरी ऐसी मुस्कानों से,
तुम बार बार झल्ला जाओगी
क्या फिर भी इश्क़ निभा पाओगी ?
क्या फिर भी प्यार जता पाओगी ?-
मैंने की दुआ कि खुदा मिले,
फिर बाद मुद्दतों ख़ुदा मिला,
मैं अगले पल फिर हैरान था,
मुझे किसकी दुआ से ख़ुदा मिला,-