अपनापन भर भर के छलके ....जिसकी बातों में,
सिर्फ कुछ ही तुम्हारे जैसे.... लोग होते हैं लाखों में...-
*हम तो जोड़ना जानते हैं, तोड़ना स़िखा ही नहीं,*
*ख़ुद टूट जातें हैं अक्सर, लेकिन किसी को छोड़ना स़िखा ही नहीं..!*-
सब धरती कागज करुँ,
लिखनी सब वनराज |
सात समुन्दर की मसी करुँ,
गुरु गुण लिखा न जाये ||
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सुमधुर सरस संगीत हो तुम
छंदों के रंगो का गीत हो तुम
तुम ही हो स्वप्नों के आकार
द्वंदो से उपजी जीत हो तुम
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ये मोहब्बत भी सरकारी नौकरी की तरह है
कम्बख्त किसी गरीब को मिलती ही नहीं
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मुसाफिर कल भी था,
मुसाफिर आज भी हूँ !
कल अपनों की तलाश में था,
आज अपनी तलाश में हूँ !!-
चलो बदल लेते हैं अपनी जिंदगी के कुछ हिस्से ।
हमारे जिंदगी की खुशियां तुम्हारी,तुम्हारे गम हमारे हिस्से।
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साथ भींगे बारिश में ये मुमकिन नहीं,
चलो भींगे यादो में तुम कहीं, मैं कहीं।
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नींद में भी गिरते हैं मेरी आँख से आंसू
जब भी तुम ख्वाबों में
मेरा हाथ छोड़ देती हो..--