क्या हैं मायने मेरे
इक एहसास करा दे मुझको
भरम है, जिंदा हूं अभी
जिंदगी की तलाश करा दे मुझको
जो उलझने लिपटी हुई हैं, बांध खुद से
औ' आज़ाद करा दे मुझको
ना छोड़ आबाद अधूरा
यूँ कर पूरा बर्बाद करा दे मुझको
पल पल मरता हूं, मौत आती ही नहीं
बेहतर है जो दफ़्न करा दे मुझको
ज़ख्म इतने हैं, अब दुखता नहीं
सहज इंकार कर औ' खत्म करा दे मुझको— % &-
11 जून (जन्मदिन की बधाइयाँ देना ना भूलें)
बर्बादी की राह पर थोड़ा खिलकर चलिए,
ना... read more
जब रात ढले लिखना हो कोई गीत
तब मत लिखना अपने दिलदार को
लिख देना कोई नज़्म
जिसमे इंसान, इंसान ही नज़र आए
लिख देना अपनी सारी पर्तें खंगाल कर
कुछ अटरम-सटरम
बिखेर देना खुद को उस गीत में इस तरह
कि बस जैसे लिखा जा रहा हो
दुनिया का आखिरी गीत-
राजा स्वयं को यादगार बनाना चाहता है,
सो वो प्रतिमाएँ बनवाता है,
कवि राजा को यादगार बनाना चाहता है,
सो वो कविताएँ बनाता है,
अंत में याद रह जाता है कवि,
राजा ? सब भूल जाते हैं।-
देखिये गौर फ़रमाइये जानिए मुझे,
गर हैं आप सूरज, मैं आफ़ताब भी नहीं,
फिर पहचानिए मुझे।।
रौशनी के कद्रदान हैं बहुत,
गर अंधेरों की तलाश है,
तो! ज़रा मन में ठानिए मुझे।।
देखिये गौर फ़रमाइये जानिए मुझे,
गर हैं आप चंद्रमा, मैं चंद्रिमा भी नहीं,
फिर पहचानिये मुझे।।
मुस्कुराहटों के कद्रदान हैं बहुत,
गर अश्क़ों की तलाश है,
तो! ज़रा मन में ठानिये मुझे।।
कुछ आतिश तो कुछ आशिक़ सा हूँ मैं,
थोड़ा और छानिये मुझे,
गर फेहरिस्त से हो उम्मीदों की छांट,
फिर शून्य मानिये मुझे।।
देखिये गौर फ़रमाइये जानिए मुझे,
गर हैं आप लाल, मैं लालिमा भी नहीं,
फिर पहचानिये मुझे।।-
तीन पैसे तीन निशान, नया सवेरा, नयी पहचान,
जो लगे पंख फिर उड़ जाऊंगा,
चिल्लाते रहना हे! भगवान हे! भगवान।
तीन पैसे तीन निशान, नयी उलझन, कौन बेईमान,
जो कटे पंख फिर चल जाऊंगा,
दूरी मंज़िल की मन में ठान मन में ठान।
तीन पैसे तीन निशान, छोटा कद, बड़ा गुमान,
जो कटे पैर फिर रेंग जाऊंगा,
हो छाती चौड़ी कर अश्रुपान कर अश्रुपान।
तीन पैसे तीन निशान, ठण्डी छाछ, बिन फूंक छान,
जो रहा ना कुछ फिर बैठ जाऊंगा,
मंज़िल निकट ले कर चालान कर चालान।
तीन पैसे तीन निशान, नया सवेरा, नई पहचान।-
उन गलियों में रेंगती बहुत सी चप्पलें,
खिट-पिट करती सिलाई मशीनें,
कुछ कंधों में पड़े नपाई के फ़ीते,
पेंसिल वाले हाथों में कैंची की कच-कच,
ज़िम्मेदारियों का एहसास करा रही हैं,
ईमान से कहूँ तो तुच्छ को भी महान बना रही हैं।
अभी नज़र इस सब में फंसी हुई है,
की इतने में पुरानी टीन की एक शेड दिखी,
पार होती उसके निम्बोली की पेड़ दिखी,
गुज़रते हुए बिजली के तार उस पेड़ के सहारे,
खिलवाड़ कर रहे बल्ब-होल्डर किसी किनारे,
बेफिक्री का एहसास करा रहे हैं,
ईमान से कहूँ तो बेईमानी की बू फ़ैला रहे हैं।।
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"एक अधूरी सी प्यास है"
(रात का कच्चा-चिट्ठा)
(Full poetry in caption)-