कर्म ही नियति रचते हैं
नियति ही कर्म कराती है-
Writer(poetry, songs), Artist, Astrologer
Poetry book अपने-आप के(संघ... read more
आँखें नम हुई दास्तान सुनकर
दिल थम-सा गया इंतजार कर
बात रह गई दिल में सिमटकर
चले गए वो बिना इजहार कर-
कर्म की कुर्सी पे बैठ कर
स्वधर्म की पेटी बाँध कर
चल पड़ अपने मार्ग पर
बस कृष्ण-कृष्ण का जाप कर
बेखौफ अडिग रह निश्चय पर
अवश्य पहुँचेगा मंज़िल पर-
तेरा मुझको यूँ छोड़ जाना
याद आता नहीं
तेरी बातों में खो जाना
याद आता नहीं
तूने किया जो जुल्मे-ए-सितम
याद आता नहीं
तेरा मुझे घर तक छोड़ना
याद आता नहीं
तेरा नम्बर जो बलाॅक किया
याद आता नहीं
तेरा नाम दिल पे छपा था
याद आता नहीं
टूटे जो अरमान संजोए
याद आता नहीं
अब तो तेरी शक्ल हुलिया भी
याद आता नहीं-
बीच समंदर की शान्त लहरें
किनारे आने पर ही शोर मचाती है
जैसे राहगीर मंजिल पा गया-
राधे-राधे मैं जपूँ
जपूँ मैं राधे दिन रैन
रो-रोकर हूँ मैं मरूँ
कबहूँ न मिले चैन
दीपक ले-ले ढूँढा करूँ
कहीं तो मिल जावे नैन
आगे-आगे पग धरूँ
मन हो जावे बेचैन
चन्द्र मुख दर्शन करूँ
तबहूँ मिले है चैन-
चिन्तन किए बिना कोई कार्य पूरा नहीं होता
भगवान की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता
चिन्ता में डूबने से किसी समस्या का हल नहीं मिलता-
श्वेत रंग फिर लाल हुआ
माँ के आँचल में दाग हुआ
इंद्रासन फिर से है डोला
स्वर्ग पे फिर से वार हुआ
दानव फिर से पड़े भारी
फिर से नरसंहार हुआ
बनी फिर से अबला नारी
देखो कैसा मतिभ्रम हुआ-