Karishma Warsi  
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Jus google my name
Joined 26 December 2019


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18 OCT AT 1:02

जीवन में “क्यों” जानना बहुत आवश्यक है।
“क्यों” से कारण मिलता है, और कारण से समाधान।
“क्यों” सिर्फ एक सवाल नहीं, बल्कि बुद्धि और संवेदना का द्वार है।
जब हम “क्यों” पूछना छोड़ देते हैं, तो हम समझना भी छोड़ देते हैं —
और वहीं से अहम, गलतफहमियाँ और रिश्तों की दूरी शुरू होती है।

पर दुर्भाग्य से आज कोई “क्यों” जानना ही नहीं चाहता,

वे सुनना चाहते हैं पर समझना नहीं, 
वे बहस करते हैं, पर विचार नहीं 
 हर कोई बस खुद को सही साबित करने कि होड़ में है,
सही या गलत को समझने में नहीं,
लेकिन विडंबना ये है, कि एक छोटा-सा “क्यों”
पूछने और समझने का समय
आज किसी के पास है ही नहीं।

लेकिन अगर हम ठहर कर हर बात का “क्यों” समझने लगें,
तो जीवन की अधिकांश समस्याएँ स्वयं ही समाप्त हो जाएँगी।
“क्यों” हमें सजग बनाता है, हमें अंधानुकरण से निकालता है,
और हमें सोचने, समझने और बदलने की शक्ति देता है।
इसलिए, अगली बार जब जीवन कोई प्रश्न दे —
तो उससे भागिए मत, बस रुकिए... और दिल से पूछिए — “क्यों?”
क्योंकि इसी “क्यों” में छिपा है आपके, आपके अपनों के हर प्रश्न का उत्तर,
और आपके जीवन की हर उलझन, समस्याओं का समाधान।    
........... तो एक बार "क्यों"? 😊🌹

                  



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17 OCT AT 18:26

"फिर भी वो उठती है" 🌺

एक मज़बूत, स्वतंत्र नारी बनना,
अब भी आसान नहीं इस समाज में।
वे उसकी हिम्मत की तारीफ़ तो करते हैं,
पर सवाल उठाते हैं हर अंदाज़ में।

कहते हैं — "आवाज़ तेरी कुछ ज़्यादा है",
"सपने तेरे आसमान से आगे हैं!"
फिर भी वो चलती है सिर उठाकर,
हर दीवार तोड़ती, हर ज़ख्म संभालकर।

कहा गया — "ठहर जा", वो दौड़ पड़ी,
रोकना चाहा, तो वो सूरज बन खड़ी।
हर "न" के जवाब में उसने लिखा —
अपनी तक़दीर, अपने हाथों से लिखा।

समझ न पाए अभी तक लोग उसकी रीत,
पर वो मुस्कुराती है, हार नहीं मानती जीत।
वो है आग, वो है रौशनी की लकीर,
नारी — जो झुकी नहीं, बस बढ़ती रही दिल से गंभीर। 🌹

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11 OCT AT 18:58

तुम मेरी कविता बन शब्दों में ढल गए और
मैं कवि बन तुम्हें हर पंक्ति में गुनगुनाती रही

हर अल्फाज़ को तेरे नक्श से सजाया मैंने
और हर नुक़्ते पर तेरी यादें मुस्कुराती रहीं

जो खामोशियाँ थीं, उन्हें आवाज़ें मिल गयी
और जो दर्द थे, उन्हें गीतों से सजाती रही

तुम जाहिर भी हुए, तुम्हें छुपाती भी गयी
और भौरों से गुल को अपने बचाती भी रही

तुम स्याही बन उतर गए मेरी कल्पना के कलम में
और 'करिश्मा' गुलशन को यूँ महकाती रही।।

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25 SEP AT 22:53

'करिश्मा' अधूरे हैं तेरे हर लफ़्ज़, बिना उस एक अक्स के...
मुझे उस शख़्स से कुछ भी नहीं चाहिए, सिवाय उस शख़्स के।

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19 SEP AT 19:50

किताबों की तरह
बहुत से लफ़्ज़ हैं मुझमें,
और किताबों की तरह
बहुत ख़ामोश हूँ मैं…
पढ़ने वाला मिले तो
कहानियाँ खुल जाएँ,
वरना अलमारी में रखी
एक अनकही किताब हूँ मैं।

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29 AUG AT 22:24

एक दौर था जब मशहूर होने का शौक था....
और एक वक़्त है की गुमनाम होने को मजबूरी है।

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21 AUG AT 20:06

“अंदर के शोर में यूँ उलझा पड़ा हूँ कि ख़बर ही न रही, मैं तो बाहर एक शांत, सुनसान कमरे में अकेला पड़ा हूँ।”

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21 AUG AT 19:45

जीवन को गतिशील बनाए रखने के लिए ठहराव जरुरी है,
अगर ठहराव लम्बा हो जाए तो ठुकराव जरूरी है।

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12 JUL AT 23:23

बता ज़िन्दगी तू ख़फ़ा है या वफ़ा ओ ज़फ़ा है,
हर मोड़ पर तेरा इक नया इम्तिहाँ सा लगा है।
जैसे हर लम्हा कोई अधूरी दुआ या पूरी बद्दुआ है,
ख़ुशियों के लिबास में भी ग़मों का सिला छुपा है।

हँसते हैं लब मगर दिल में इक सन्नाटा बसा है,
आईने में जो चेहरा है, वो मुझे जुदा सा लगा है।
ना तू मझसे दूर गई  और ना मैं तेरे  पास आया,
बता ज़िन्दगी खफ़ा है,क्यों ये तेरी तर्ज़-ए-ज़फा है?

कभी लगती तू "करिश्मा",कभी दर्द की इन्तिहा है,
जहाँ बेवफाई तेरा फैसला और वफ़ा हर सू मेरी सदा है।।

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9 JUL AT 23:09

Karishma who is a Mystery,
Born to create History.

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