मन में है एक बेखयालि, दिल में नहीं है सुकून
दर्या बह रहा है लेकिन पानी की झंझनाहट में नहीं है जुनून, याद आ रहा है बस वही समय जो लौटके नहीं आ सकता, दर दर ठोकरे खा कर भी कोई इस दिल को बहला नहीं सकता
चाहत अधूरी रह गई लेकिन मलाल है इस कड़वाहट का जो बिना चेतावनी के धुँधला कर गई आसमान को, तारों की रोशनी तले अंधा कर गई इस जहाँ को, लेकिन जो हुआ वो हुआ है सही, बस यही तसल्ली दे कर आग भुज रही है लेकिन अंगारों तले ज़िंदगी जल रही है,
बस एक झलक देखने की फरियाद में बची हुई ज़िंदगी कट रही है
-Karan Paruthi
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