Kapil Sharma   (नुक़्ता)
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Joined 31 December 2019


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16 JUN AT 22:40

I apologize,
forgive me, please,
I forgot what heavenly bliss is!

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16 JUN AT 0:28

चाँद से प्यार करती है

तारिकाएँ मुँह फुला,
बहुत तक़रार करती है

ये सरूर, दीवानगी,
साक़ी इसरार करती है

गो ज़िन्दगी, दिल्लगी
नई हर बार करती है

नुक़्ता बेतकल्लुफी कैसी,
नज़र ए जानाँ,
इज़हार करती है

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8 JUN AT 17:29

है अजीब रिन्दगी,
तू लबो पे है, फिर भी
कम होती नही, तश्नगी

है यही ताबिन्दगी,
घायल रूह, खामोश सी,
कर रहम, ए ज़िन्दगी

थकन, दर्द भर रही
ये गर्द ए राह जमी जमी,
चल कहीं और चले,
तशरीफ़ उठा आवारगी

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7 JUN AT 12:50

है अजीब रिन्दगी,
तू लबो पे है, फिर भी
कम होती नही, तश्नगी

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6 JUN AT 19:06

प्रेम औ द्वेष के, अनंत अंतर्द्वंद में
जो शनै ही अनल पलता है,
हे सखी, इसी पावक से, मन अरण्य
क्षण क्षण कर जलता है

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6 JUN AT 14:06

कैसी मुसलसल बरसातें, है अपने दश्त ए दर्द में,
मुझको सारे अरमाँ मिले, लथपथ लथपथ होकर

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6 JUN AT 13:54

पीड़ा में भी एक गीत पला करता है,
अंधियारों में दीप जला करता है।
जो खो गया, वही सबसे पास रहा,
जो टूट गया, वही बना करता है।

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3 JUN AT 23:08

साँस, साँस तस्बीह है,
धड़कन धड़कन बंदगी,
लम्हा, लम्हा खूबसूरत है
गर तू वजह ए ज़िन्दगी

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3 JUN AT 12:47

And this life,
waking everyday,
from one dream to another
waking each morn,
in the arms of her
and to lay there,
watching her sleep,
in the smile filled bliss,
heaven this is!

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2 JUN AT 19:15

उलझा उलझा जीवन मेरा
उलझा उलझा अंतर्मन,
भटकाता कभी, कभी राह दिखता
पगला रहबर अंतर्मन।

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