Kapil Pandey KP  
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Joined 10 June 2017


Joined 10 June 2017
15 MAY 2024 AT 21:45

ना इब्तिला होगा ना इब्तिसाम–ए–नुमाइश होगी ,
कि कयामत के दिन भी मुझे तेरी ही ख्वाइश होगी ।

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30 APR 2024 AT 1:21

अपना अक्स भी बेकरार देखता हूं
ता–हद्द–ए–नजर इंतजार देखता हूं

कोई तो तोल दे मेरे दर्द को ,
अब हर घड़ी मैं बाज़ार देखता हूं ।

आइने में देखूं तो क्या देखूं
खुद से ज़्यादा उसे इज्तिरार देखता हूं ।

वो अब भी कहती है क्यूं देखते हो मुझे
जब भी देखूं उसे , उसमे प्यार देखता हूं ।

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24 JAN 2019 AT 20:27


पहले रोका, फिर रोका , बहुत रोका,
फिर ......उसे जाने दिया मैंने ।

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26 OCT 2021 AT 14:35

हवाओं से कहो आहिस्ता चलें ,
फिज़ाओं से कहो शाइस्ता चलें ।

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19 DEC 2020 AT 22:27

वो जो मुझे समझते हैं , सही समझते हैं ।
वो जो मुझे समझते नहीं , मुआज़िज़ समझते हैं ।

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4 OCT 2020 AT 20:37

तेरे ना होने के चर्चे तमाम हैं जहां
कभी वो बज़्म मेरे नाम से मशहूर थी

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12 SEP 2020 AT 10:19

ना ख़ुदा रहा
ना ख़ुद हो गया
बेखुद कुछ यूं हुआ कि
ख़ुद बा ख़ुद हो गया ।

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25 AUG 2020 AT 12:07

झांक कर देख ले ,मेरे क्या मंसूबे हैं
कि हम खुद से ज़्यादा , तुझ में डूबे हैं ।

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15 JUL 2020 AT 8:12

एक गुनाह जो कभी किया नहीं गया ,
एक सज़ा जो कभी ख़त्म नहीं हुई ।

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3 JUL 2020 AT 13:48

हाजिरी से वो हमारी ला-इल्म थे ,
और हम उनके मुश्ताक बन बैठे
खता इतनी सी थी कि नज़रें मिला लीं ,
नज़रें चुरा लीं और गुस्ताख बन बैठे ।

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