ना इब्तिला होगा ना इब्तिसाम–ए–नुमाइश होगी ,
कि कयामत के दिन भी मुझे तेरी ही ख्वाइश होगी ।-
अपना अक्स भी बेकरार देखता हूं
ता–हद्द–ए–नजर इंतजार देखता हूं
कोई तो तोल दे मेरे दर्द को ,
अब हर घड़ी मैं बाज़ार देखता हूं ।
आइने में देखूं तो क्या देखूं
खुद से ज़्यादा उसे इज्तिरार देखता हूं ।
वो अब भी कहती है क्यूं देखते हो मुझे
जब भी देखूं उसे , उसमे प्यार देखता हूं ।-
पहले रोका, फिर रोका , बहुत रोका,
फिर ......उसे जाने दिया मैंने ।-
वो जो मुझे समझते हैं , सही समझते हैं ।
वो जो मुझे समझते नहीं , मुआज़िज़ समझते हैं ।-
तेरे ना होने के चर्चे तमाम हैं जहां
कभी वो बज़्म मेरे नाम से मशहूर थी-
ना ख़ुदा रहा
ना ख़ुद हो गया
बेखुद कुछ यूं हुआ कि
ख़ुद बा ख़ुद हो गया ।-
झांक कर देख ले ,मेरे क्या मंसूबे हैं
कि हम खुद से ज़्यादा , तुझ में डूबे हैं ।-
एक गुनाह जो कभी किया नहीं गया ,
एक सज़ा जो कभी ख़त्म नहीं हुई ।-
हाजिरी से वो हमारी ला-इल्म थे ,
और हम उनके मुश्ताक बन बैठे
खता इतनी सी थी कि नज़रें मिला लीं ,
नज़रें चुरा लीं और गुस्ताख बन बैठे ।
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