इतने अरसे बाद भी
थोड़े बहुत रह ही गए मुझमें,
तुम्हें तो ठीक से
बिछड़ना भी नहीं आया।-
"वो लोग बहुत ख़ुशक़िस्मत थे
जो इश्क़ को काम समझते थे
या काम से आशिक़ी करते थे,
हम जीते जी मसरूफ़ रहे
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
काम इश्क़ के आड़े आता रहा
और इश्क़ से काम उलझता रहा
फिर आख़िर तंग आकर हम ने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया।"
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़-
जगजीत साहब के काम को समेटा नहीं जा सकता।
लेकिन हमारे लिये
"प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है,"
से लेकर
"तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हुँ,
आग बहते हुए पानी में लगा आया हुँ,"
तक का सफ़र जगजीत सिंह है।
#JagjitSingh-
प्रेम की तीव्रता तो लड़कपन में ही होती है,
समझदारी की उम्र में तो बस समझौते होते है।-
दिन गुजरे, हफ़्ते बीते
निकलते गये साल,
उम्र कटती रही धूप छाँव में
गिरते पड़ते चलते रहे राहों में
ना रहा कोई मलाल,
जिंदगी जीना अब शुरू हुई
जब पीछे छोड़ आये सब सवाल,
ना अकेले है ना तन्हा है
ना कोई इच्छा ना कोई ख़्याल,
अब जो भी है, हम अपने साथी खुद है
चलते रहेंगे मुसाफिर यूँ ही साल दर साल।-
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे ,
मैं तो तेरे पास में।
ना मैं तीरथ में, ना मैं मुरत में,
ना एकांत निवास में ।
ना मंदिर में, ना मस्जिद में,
ना काबे, ना कैलाश में।।
ना मैं जप में, ना मैं तप में,
ना बरत ना उपवास में ।।।
ना मैं क्रिया करम में,
ना मैं जोग सन्यास में।।
खोजी हो तो तुरंत मिल जाऊ,
इक पल की तलाश में ।।
कहत कबीर सुनो भई साधू,
मैं तो तेरे पास में बन्दे…
मैं तो तेरे पास में…..
– कबीर-
धागा बड़ा कमजोर
चुन लिया था,
जिंदगी भर
उसमे गांठे लगाने
और पैबंद लगाकर
रफूँ करने की जगह
तोड़ लेना ही बेहतर
समझा हमनें...-
हम वो लोग है साहब जिन्हें अब भी गुलाबों की खुशबु से ज्यादा अच्छी किताबों की खुशबु लगती है।
-
कुछ रिश्ते मोबाइल की फोनबुक के
नम्बरों की तरह होते है,
जो कांटेक्ट लिस्ट से
ज्यादा ज़ेहन में सेव होते है।
कई बार हम उनसे बात तो करना चाहते है,
फ़ोन उठाकर उँगलियाँ उनका नाम खोजने की
जगह सीधे नंबर डायल कर देती है।
लेकिन फिर कॉल करते ही जब मोबाइल पूछता है
सिम 1 या सिम 2 तब अचानक हम उस कॉल को
कैन्सल कर देते है।
सालों से फ़ोन में सेव किये बिना
वो नंबर जो दिमाग को अब भी मुँह जबानी याद है,
पता नहीं अब भी सेवा में है या नहीं।
ये कतई जरूरी नहीं कि जैसे हमनें अपना नंबर
अब तक सिर्फ इसलिए नहीं बदला कि
कहीं भूले भटके उस पर कोई कॉल ना आ जाये।
वैसे ही शायद उधर वो नंबर कब का बदल गया हो
कि कहीं कोई कॉल ना आ जाये।
बस इस खुशफहमी में हम गुम रहते है कि
सब ठीक ही होगा उधर,
अगर कोई परेशानी होती तो
अब तक फ़ोन आ गया होता।
इतना समय गुजर जाने के बाद भी हमें
ये यक़ीन जरूर है कि भले ही हमारी याद आये न आये,
हमारा नंबर जरूर मुँहजबानी याद होगा।
अब रिश्ते नम्बरों में ही याद रखे जाते है।
इधर भी एक नंबर और उधर भी एक नंबर।
- © कपिल कुमार 02 अप्रैल 2021-
पुरानी डायरी में दबा
सूखे गुलाब सा इश्क़,
जब भी खोले सफ़े पुराने
महक उठता पुराना इश्क़,
पूनम की चाँदनी रात में
तारों से बातें करता इश्क़,
बेक़रार मन को तसल्ली देता
रातों को जागता इश्क़,
अब ना जाने कहाँ खो गया
आँखें मिलते ही मुस्कुराने वाला इश्क़।-