Kapil Gupta   (Kapil gupta)
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Joined 16 March 2018


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24 DEC 2021 AT 22:42


आज किसी पर यकीन किया था
आज हमें फिर दगा मिली
भीड़ भरे बाजार से गुजरे थे
आज फिर वीरानियां मिली

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3 DEC 2021 AT 23:05

आसमां की सिफारिशें
चांद ही क्यों करे
मेरे भी तो अपनो का
वहीं ठिकाना है



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23 NOV 2021 AT 19:52

पश्मीना के धागों सी
सांसों में गरमाहट है
कुछ और नहीं उनके
उन्स की ये आहट है

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9 NOV 2021 AT 21:24

जुदा वो यूं हुआ था
जैसे धरती अंबर का फासला था
बस इतना सा गिला था
मेरे मकां के सामने ही उसका मकां था

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29 OCT 2021 AT 13:39

मैं तुझसे दूर सही.....
तुझमें एक एहसास रहूंगा
सांसों में तेरी घुल जाऊंगा
तेरे दिल के पास रहूंगा
कहीं भी न ढूंढना अब मुझे
मिलूंगा हर जगह
हवा की तरह मैं तुझे .....

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18 SEP 2021 AT 0:53

जरा गौर से सुनो
दीवारों की दरारों को
मकड़ी के जालों को
धूल भरे किनारों को
चौखटों के सहारों को
मैले पर्दों के इशारों को
टूटी हुई चारपाई को
उधड़ी हुई रजाई को
भदरंगी बिछाई को
छत से टपकते नीर को
जंग लगी जंजीर को
तुमने आने में देर कर दी
अब ये घर, घर नहीं रहा
शमशान बन गया है
तुम्हारी यादों की चिताएं
यहां हर रोज जलती हैं


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5 SEP 2021 AT 23:51

बस बहुत हुआ अब....
बंदिशों को तोड़कर
रूह के परिंदे को
आजाद हो जाने दो....
किस्मत को बहुत
आजमा लिया
अब सुकून के दरवाजे
खटखटाने दो....
शायद हमारा साथ
इसी जहां में था
उस जहां में मुझे
तन्हा ही जाने दो....
तुमसे मुलाकात
कयामत के दिन होगी
बस अब मुझे
फना हो जाने दो....

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25 MAY 2021 AT 20:37

अंधेरे में जुगनू की तरह झिलमिला जाऊंगा
बस आंख बंद करना, मैं नजर आ जाऊंगा

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22 MAY 2021 AT 20:05

हम बंद आखों से उनका तवाफ करते हैं
और वो हमारी गलतियों का हिसाब करते हैं

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23 APR 2021 AT 0:22

हवा बिक रही बाज़ार में, सांसें तंग है
ज़िंदगी की ज़िंदगी से कैसी ये ज़ंग है

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