शहर के पिंजरे की क़ैद से आज़ाद, एक परिन्दा क्या लिखता है
गाँव की बंद हवेलीं, एक लटका ताला दिख़ता है
टूटे आँगन, सूखा पेड़ नीम का
बंद हो गये दवाईखाने, भूखा पेट हकीम का
ख़ाली पड़ी चौपाले, ना पंचायत ना पंच
ना दिखते कलाकार, सूना रामलीला का मंच
ना तालाब ना कुआँ, गंदा जोहड़ का पानी
नहीं दिखती अब, दादी नानी की कहानी
मैदानों का सन्नाटा, गलियाँ तरसती है शोर को
ना छुपा छिपाई, ना पकड़ा पकड़ी, ना कांजी ढूँढे चोर को
पिट्टू के टूटे पत्थर, दीमक लगे गिल्ली डंडे
कट गई उड़ती पतंग, खो गये सारे कंचे
टूटी डाकिये की साइकिल, टूटी मास्टर जी की छड़ी
सूखा प्याऊ वाला मटका, मंदिर पर लग गई कड़ी
बिछडा दोस्तों का झुंड, बिछड़ा परिवार का साथ
ना गर्मी वाली छुट्टी है, ना नावों वाली बरसात
पेट पालने को, पैसा कमाने को, कुछ कर जाने को
हम छोड़ आए अपने गाँव को वीराना बन जाने को-2
वो टूटी पगडंडी, गलियों का सन्नाटा, सूना आँगन, लटका ताला
खोया बचपन, सूना मैदान, वो मंदिर की मुरझाई माला
गुहार लगाती है, हम सब के लौट आने को
उस वीराने के फिर एक बार ,गाँव बन जाने को-2-
माना के तुम रामभक्त हो, पर राम सी क्या बात है
क्या राम सी मर्यादा है, क्या राम से जज्बात है
क्या राम से योग्य हो, क्या राम से धर्मज्ञ हो
क्या राम से प्रतिज्ञ हो, क्या राम से कृतज्ञ हो
क्या राम से नीतिवान हो, क्या राम से गुणवान हो
क्या राम से बुद्धिमान हो, क्या राम से विद्वान हो
क्या राम से तेजस्वी ,क्या राम से दयालु हो
क्या राम से त्यागी हो , क्या राम से कृपालु हो
राम भक्त कहने से पहले, राम को तुम जान लो
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के, गुणों को पहचान लो
श्रीराम गुणों का सागर है, तुम अंजलीका मात्र बन जाओ
अनुसरण श्रीराम के जीवन का, तुम एक समर्पित छात्र बन जाओ
तनिक समझे श्रीराम के जीवन को, आलौकिक ज्ञान के पुष्प खिल जाएंगे
और कलयुग में भी, फिर भक्त को भगवान मिल जाएंगे
-कपिल गर्ग-
अकेलापन सा लगता है, अब वीरानो की बस्ती में
मायूसियत सी लगती है दुनिया की मस्ती में
आंसुओ की बूंद नही, नैनो में सूखापन लगता है
भरी भीड़ में भी अब अधूरापन लगता है
सितारों से भरा आसमान, काश कोई टूटता तारा दिख जाए
तारा बनने की एक दुआ, जिसमे काश कबूल लिख जाए-
मुझे कबूल नहीं मेरे अल्फाजो का किताब बन जाना
मेरे जज्बातों का चंद कौड़ियों में हिसाब लग जाना
के मेरे लिखने पर तेरा मुस्कुराना -2,
मानो मेरी शायरी का खिताब बन जाना-
बेमौसम आई जो ये ओलावृष्टि और बरसात है
न जाने कितने किसानों के ख्वाबों कीआखिरी रात है
पक कर खड़ी है जो ये फसल खेत में
मिल जाएगी सब एक पल में रेत में
धरती का सीना चीर फसल उगाना आसान नहीं था
भुला दिया रातों की नींद को ,ठिठुरती सर्दी में भी किसान वही था
कर्जे तले दबा हुआ, इसी आस में जी रहा था
मेड पे खड़ा हुआ, वो पसीना पी रहा था
खुद का पेट पालने को, हम सब का पेट भरने को
खड़ा रहा वो खेत में,अनगिनत चुनौतियो से लड़ने को
पर लड़ता लड़ता देखो शायद वो भी प्रकृति से हार गया
कभी अतिवृष्टि कभी ओलावृष्टि कभी सूखा, तो कभी अकाल मार गया
बताओ मुझे एक जवाब, चाहे इंसान चाहे भगवान
इस रात के बाद आखिर कैसे जियेगा किसान..कैसे जीयेगा किसान-
जिंदगी की ये नाव, उस मल्लाह के सहारे पर
पहुंच ही गई है , अब इस साल के किनारे पर
हां कुछ खुशियां मिली, तो कुछ गम मिले
कही गिले शिकवे थे, तो कही रिश्तों के पुष्प खिले
कही अपनो का मेल हुआ, कही जुदा हो गए
कही चेहरों से नकाब हटे, कही इश्क में खुदा हो गए
कही मस्जिद मिली, कही मंदिर मिला, कही मयखाना मिल गया
कही बेघर हुआ कोई चौखट से, कही ठिकाना मिल गया
कही दिखी इंसानियत, कोई हैवानियत को भी मार गया
कोई लड़ता रहा इन तूफानों से, तो कोई हार गया
कुछ ख्वाब पूरे हुए, कुछ अधूरे रह गए
कुछ किस्से कहानी बने, कुछ अनकहे रह गए
ऐ खुदा यूं ही इन्ही यादों से हमे हंसते रुलाते रहना
ऐ जाते हुए साल ,भूले बिसरे गीत की तरह जुबां सजाते रहना-
बाते नही होती पहली सी अब, वो थोड़े जुदा लगते है
काश कह पाते उनसे, आज भी वो हमे खुदा लगते है-
ना जाने कैसी ये घुटन है ,कैसी ये उदासी छाई है
कोई साथ नही मेरे, ये अकेलेपन की खाई है
समझा भी नही पाता किसी को, ना जमाने से समझने की ख्वाहिश आई है
खैर छोड़ो, मुस्कराते चेहरे के पीछे छुपी ये कड़वी सच्चाई है-
झूठ है के सिर्फ तीन रंग तिरंगे में, एक और भी है पर कोई लिखता ही नही
लहरा रहा तिरंगा बदौलत जिन अमर शहीदों की, वो बलिदानी लहू का रंग लाल दिखता ही नही-
ऐ रात मेरी भी कुछ खबर ले, के मयखाने से मेरे घर का रास्ता कुछ दूर है
गर लाख भी ठुकराए वो हमे अपनी महफिल में,
पर मगर ,कह दो उनसे के उनका इस गरीब से वास्ता कुछ जरूर है-