Kapil Bhavsar  
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Joined 19 March 2019


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Joined 19 March 2019
19 APR AT 23:47

कितना शापित है स्वयं का शत्रु हो जाना
आत्मविश्वास का मर जाना
और अवसाद से घिर जाना

जब तुम खुद से हारे हो
जब तुम खुद पर धिक्कारे हो
जब मन करता हो स्वयं के प्राण नोचने को
जब न बचा हो कोई त्राण सोचने को

तब लड़ना खुद से
लड़कर थकना खुद से
थककर फिर उठना खुद से

पहेली है जीवन
उलझना और सुलझना खुद से।

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14 JAN AT 20:24

कितनी सुंदर झांकी होगी
कितनी राहें ताकी होंगी
एक दर्श को रघुनंदन के 
कितनी अखियाँ प्यासी होंगी

अखियों ने नीर बहा जहाँ स्वप्न आज को देखो तो,
जिस सरयू के तट पर रामराज्य को लेखो थो,
रामराज्य की पावन बेला समय फिर चुनवे वालो है,
फिर बई पुरातन माटी पे मन्दिर बनवे वालो है।

🙏🚩Kapil Bhavsar✍️

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30 DEC 2023 AT 8:04

मैं तुम्हें संसार में सबसे अधिक प्रेम करना चाहता हूँ,
इसलिए नहीं कि मैं चाहता हूँ
इसलिए कि ऐसी तुम हो,
जिसे कोई सिर्फ प्रेम ही कर सकता है।।
😊🤗

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29 SEP 2023 AT 3:12

दर बदर, बेखबर, बे होश..
मैं मुसाफिर खानाबदोश.

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6 AUG 2023 AT 14:31

-Kplpoetry

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17 JUN 2023 AT 0:17

Kapil

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22 APR 2023 AT 11:16

~Kapil Bhavsar

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26 JAN 2023 AT 19:13

एक दिन नहीं कटता तुम्हारी याद में,
जीवन क्या कटेगा तुम्हारे बाद में।

तुम्हारी मुस्कान मुझ तक आती है,
जरा मुस्कुरा दिया करो मेरे ख्याल में।

जरूर ही कहीं सूरज तप रहा होगा,
यह नूर आता कहाँ से है चांद में?

मसअला यह नहीं कि
फूल कब तक खिला रहा 'कपिल'
खुशबू ताउम्र आती रहेगी हाथ में।

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22 DEC 2022 AT 17:04

मैं 'मैं' नहीं हूँ 'वह' हूँ...
मैंने पाया है कि जीवन के बहुल क्षणों में,
मैं 'वह' हो जाता हूँ।

वह का 'वहत्व' भी स्थायी नहीं है,
वह परिवर्तित होता रहता है बाहरी सन्दर्भो में।

मैं को 'मैं' का 'वह' होना कभी कभी कचोटता है;
पर 'मैं' से ज्यादा बेहतर बाहरी सन्दर्भों को 'वह' सम्भालता है।

पर सोचता हूँ कि
मैं 'मैं' कब होता हूँ?
मैं सिर्फ 'वह' के अलग अलग रूपों का
समुच्चय मात्र हूँ या मैं में कुछ 'मेरापन' भी है?

मैं अपने बाहर 'मैं' को नहीं सिर्फ 'वह' को पाता हूँ,
'मैं' को सिर्फ मैं अपने अंतस में ही खोज पाता हूँ,
और महसूस करता हूँ कि
'वह' कितने भी रूप बदले पर 'मैं' से स्वतंत्र नहीं हो पाता
'मैं' कुछ न कुछ मात्रा में 'वह' में झलक ही जाता हूँ।

न 'मैं' पूर्ण हूं न 'वह' पूर्ण है
मैं इस समन्वय में ही स्वयं को पूर्ण मानता हूँ।

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22 DEC 2022 AT 16:53

तमाम कोशिशों के बाद
अंत में मिलती है नाकामी,
फिर जन्म लेती है छोटी सी उम्मीद
और फिर की जाती है कोशिश,
फिर से नाकाम होने के लिए
बस एक सफलता की आस में...

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