मनुष्य इतना स्वार्थी होता है कि
टूटते तारे से भी 'ख्वाहिश' मांगता है...-
मैं मुसाफिर खानाबदोश।"
Unique Hastag for my poetry is #kplpoetry
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खुदा तेरी कायनात का
एक 'बग' हल हो जाये,
या तो मोहब्बत हो ही न
हो तो मुक्कमल हो जाये।-
है आलम यह कि मैं कुछ कह भी नहीं सकता
झुके तेरी नजर; मैं सह भी नहीं सकता।
हैं कातिल कई मेरे विश्वास के
किसी एक का नाम; मैं ले भी नहीं सकता।
कुछ इस कदर टूटा है मेरा गुरुर
मुझे लगा था कि ढह भी नहीं सकता।
लिखे देता हूँ अश'आर कि नजर तेरी भी पड़ेगी
यूँ कहे बिना मैं रह भी नहीं सकता।-
निकलना अपने घर से
अच्छे कपड़े, ब्रांडेड वॉच
और महंगा परफ्यूम लगाकर
फ़ूड की 'जंक' व्यवस्था कर
दो-चार मूवी,
ऑनलाइन सुविधाओं की खूबी
चेहरे पर गौरवत्व का भाव
और प्रथम श्रेणी का कन्फर्म टिकट।
देखना,
पटरी के समानांतर फैली मलिन बस्तियां
दुर्व्यवस्थाओं में पनपता जीवन
नग्न तन कूड़ा बीनता बचपन
भूख से पिचके पेट
आश में फैले हाथ
भीड़ की ठेलमठेल में
एक पैर पर खड़ा बुढ़ापा
लाज और शर्म को बेबसी में समेट
फर्श पर लेटा स्त्रीत्व
सोचना सँघर्ष महत्वाकांक्षाओं
का बड़ा या अस्तित्व का?
डगर चाहे जो चुनना पर
जब suffer में हो तो सफ़र करना ।।-
कितना शापित है स्वयं का शत्रु हो जाना
आत्मविश्वास का मर जाना
और अवसाद से घिर जाना
जब तुम खुद से हारे हो
जब तुम खुद पर धिक्कारे हो
जब मन करता हो स्वयं के प्राण नोचने को
जब न बचा हो कोई त्राण सोचने को
तब लड़ना खुद से
लड़कर थकना खुद से
थककर फिर उठना खुद से
पहेली है जीवन
उलझना और सुलझना खुद से।-
कितनी सुंदर झांकी होगी
कितनी राहें ताकी होंगी
एक दर्श को रघुनंदन के
कितनी अखियाँ प्यासी होंगी
अखियों ने नीर बहा जहाँ स्वप्न आज को देखो तो,
जिस सरयू के तट पर रामराज्य को लेखो थो,
रामराज्य की पावन बेला समय फिर चुनवे वालो है,
फिर बई पुरातन माटी पे मन्दिर बनवे वालो है।
🙏🚩Kapil Bhavsar✍️-
मैं तुम्हें संसार में सबसे अधिक प्रेम करना चाहता हूँ,
इसलिए नहीं कि मैं चाहता हूँ
इसलिए कि ऐसी तुम हो,
जिसे कोई सिर्फ प्रेम ही कर सकता है।।
😊🤗-