Kanishka Jain   (कनिष्का जैन)
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Joined 31 October 2018


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28 MAR AT 20:48

राह को न छोड़ तू
कदमों को न मोड़ तू
गर है राह वीरान तो
संग नई उम्मीद जोड़ तू !

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27 NOV 2024 AT 21:27

ख्वाब वो ही अच्छे जिनमें जुनून हो
एक जोश भरा सकारात्मक सुकून हो
नील गगन में उड़ान भरने की ललक हो
संघर्षों में सफलता की झलक हो!

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19 NOV 2024 AT 20:34

तुम बनो प्रबल प्रवीण, प्रफुल्लित पुष्प जैसे
तुम चलो चपलता चाल, चकित चट्टान हो जैसे
तुम चलो डगर , न हो तुम्हारे पग डगमग
तुम रहो निर्भय निर्भीक, नभ जैसे हो जगमग!

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4 AUG 2024 AT 13:09

"प्रगति"पद पर रहे अग्रसर, "माधवी" सम सब रहे,
आंखों में लाज "काजल" की, निश्रा "निशा" संग रहे !

"मीनाक्षी" से चंचल नैन, "पुष्पा" दिलो में महकती रहे,
"निकिता" सी लालिमा चेहरे पर, "कशिश" हमेशा चमकती रहे!

अकल्पित मस्ती "अक्षय" तुम्हारी, "रजत" सी दमकती रहे ,
"बादल" सा "दृढ़"प्रतिज्ञ , "शिव" की कृपा झलकती रहे !

"पूजा" हो पल प्रतिपल, "पूनम" सदैव प्रिय रहे ,
"अनुजय" जैसा निर्भय जीवन, सशक्त "राहुल" सक्रिय रहे!

"भारत" सा पुलकित मन, "कार्तिक" सदर्श कर्म रहे ,
"कनिष्का" दोस्ती ऐसे रहे सदा, ये बंधन सर्वदा आदर्श रहे!

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6 DEC 2023 AT 19:52

चल मुलाकात करते है!
सुबह की वो ठंड मे
दो चाय कप साथ में,
ठिठुरती सी शाम में
प्यारी बाते करते है!

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12 SEP 2023 AT 22:57

एक दो एक दो
खुदी को खो दो!

तीन चार तीन चार
कोशिश करो बार बार!

पांच छह पांच छह
दिक्कत थोड़ी सह सह!

सात आठ सात आठ
बांध लो मन में गांठ!

नौ दस नौ दस
इतना कर लो बस!

ग्यारह ग्यारह बारह बारह
जीवन में लो थोड़ा सराह!

तेरह तेरह चौदह चौदह
चमकते रहो जैसे सुबह!

पंद्रह पन्द्रह सोलह सोलह
मजबूत बना खुदको हर तरह!

सत्रह सत्रह अठारह अठारह
आसमां की उड़ान में हो फतह !

उन्नीस उन्नीस बीस बीस
कर्म करते रहो और बनो नफीस!

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7 SEP 2023 AT 21:36

क्यों अकेले छुपी तू नजरो से ,
साथ बैठ इस अंधेरे सफ़र में
कुछ न सही झूठी तकरार तो कर !

भीगी चक्षु को न अश्क में बहाकर
न क्रोध भरे जज्बातों में खुद को दबा,
कह दे जो तड़प तड़प के जी उठी जबां
मुझसे न सही अंधेरे से दो अल्फाज़ तो कर!

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7 SEP 2023 AT 13:56

बांसुरी की तान पे
नचाए जो गोपियों को
ऐसा नंदलाला नटखट
रंग रसिया श्री कृष्ण है!

छैल छबीला छलिया से
माखन चुराने वाला,
मन मोहिनी मूरत मोरपंखी
मुकुट जो साजे श्री कृष्ण है!

भावो को निश्चलता से
हरदयगमन करने वाला
सर्वव्यापी विश्व विधाता
लीलाधर भी श्री कृष्ण है!

पीताम्बर और नीलांबर कृष्ण
कोमल चंचल, वीर साहसी कृष्ण
अत्र - तत्र , यत्र- सर्वत्र कृष्ण
सृष्टि का सार ही श्री कृष्ण है!

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19 AUG 2023 AT 10:22

वो शाम की घड़ी थी
मैं जिन्दगी से अड़ी थी
गरज रहे थे बादल
मैं गुमशुम सी खड़ी थी

था अंधेरा चारो तरफ़
मगर आँखों में चमक थी
बिजली से तेज चल रही
धड़कनों में हैरानी कोई थी

छाया बादलों का एक समां सा
मैं निहारने चली एक कड़ी थी
रुकते थमते बूंदों का एक सैलाब सा
न जाने क्यूं मैं हरैत में पड़ी थी!

हैरानी हुई इन बादलों के शोर से
ना जाने क्यों सुनने लगी मैं गौर से
कुछ बाते अनकही सुनाई देने लगी
जैसे बारिश में मोरनी नाचने लगी!

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18 AUG 2023 AT 15:12

उदासी बात करती है
जोश से,
जुनून की....

उदासी बात करती है
हार से,
जीत की....

उदासी बात करती है
कर्म से,
कर्मनिष्ठ की .....

उदासी बात करती है
दुःख से,
सुख की.....

उदासी बात करती है
अंधेरे से,
रोशनी की.....

उदासी बात करती है
बादल से,
बरसने की......

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