जाना किधर था
ना जाने किधर बढ़ रहा हूं मैं
लिखनी थी खुद की तकदीर
ना जाने दूसरों की लकीरें पढ़ रहा हूँ मैं
उम्मीदें होनी थी खुद से
ना जाने हालतों को दोष दे रहा हूँ मैं
हासिल नहीं किया कुछ भी
ना जाने खोने से क्या डर रहा हूं मैं-
मान जाऊँ तुम्हारी हर ख्वाहिशें
एक बार कह कर तो देखो
याद है मुझे वो सारी मुलाकातें
एक बार इन आँखों मे झाँक कर तो देखो
अब तक तेरी महक बसी मुझमें
एक बार सीने से लगा कर तो देखो
दूर नही गया तुझसे मैं
एक बार आवाज़ लगा कर तो देखो
मशहूर है तेरे खिस्से मेरे शहर में
एक बार अपना नाम बता कर तो देखो-
छोड़ चला जाऊं किसी रोज़ इन राहों को
तो माफ़ कर देना यारों
सुना है ये ज़िन्दगी बड़ी खुदगर्ज़ है
किसी को मौहलत नहीं देती-
हाँ सीख लिया मैंने मोहब्बत करना
तुम निभाना कब सीखोगे ?
हाँ सीख लिया मैंने इंतेज़ार करना
तुम साथ देना कब सीखोगे ?
हाँ सीख लिया मैंने दिल लगाना
तुम निगाहें मिलाना कब सीखोगे ?
हाँ सीख लिया मैंने इज़हार करना
तुम इकरार करना कब सीखोगे ?
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ढल गया है सूरज भी अब तो
मगर तुम्हारी शाम कब होगी?
हर दिन बहाना काम का
तुम्हरी रातें आम कब होगी?
मुलाकातें मेज पर रखी हैं
मगर ये बाते तमाम कब होंगी?
तन्हा ही वक्त कट जाता है
तमाम घड़ियां नाकाम कब होगी?
भर दिए है कोरे कागज कुछ
ये चिट्टीयाँ पयाम कब होगी?-
कभी नाम बदले
कभी जगह बदली
पर दरिंदगी की सोच ना बदली इन हैवानों की
आ गया अब समय कि हम बदले
आओ मिलकर साथ हम मोमबत्ती नहीं
चिता जलाए अबकी इन हैवानो की
#hang_the_rapist-
कल तुम्हें फ़ुर्सत ना मिली
तो क्या करोगे ???
कल इतनी मौहलत ना मिली
तो क्या करोगे ???
रोज़ कहते हो ना कल
बात करोगे मुझसे
कल मेरी आँखे ही ना खुली
तो क्या करोगे ???-
चाँद और सूरज
सा इश्क़ है हमारा
मैं जलता हुँ तुझे रौशन
करने के लिए
तू ढलती है मुझे रौशन
करने के लिए-
कुछ कह गए
कुछ सह गए
कुछ कहे अनसुने
अल्फाज़ यूँ ही बिखर गए
इस सही ग़लत के खेल में
ना जाने कितने ही रिश्ते
ढल गए-