यादों मे यूं कतरा -कतरा, लम्हा लम्हा,
जीने की जुस्तजू मे मर ना जाएं हम तन्हा- तन्हा!
बिखरे भी, मिटे भी, हम टूटे भी बेइंतहा,
करीब थी मंज़िल और रूठा उमीदो का जहाँ!
शोर -ए -दिल किसी से हम कर ना सके बया,
चीखती रही रूह, मगर सील सी गई जुबां!
ख्वाहिशे ज्यादा ना थी, बस -"एक आशियां '!
तुम से हो राते हसीं, तुम्ही से हो उजली सुबह!
इश्क़ मे तुम्हारे झूमू, लुटा दू अपने दोनों जहाँ,
विरह मे बरसती आँखे चूमे तुम्हारे क़दमों के निशां!
धागे मन्नत के ना जाने बंधे हमने कहाँ -कहाँ,
यहाँ ना सही, मिलना तुम झूमती है परियां जहाँ!
टुकड़ों मे ना बिखरेगा जहाँ ख़्वाबों का कारवां...
दुनियादारी से परे, धडकेंगे दो दिल नादां वहाँ!!
--kanchan
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