धुंधली सी यादें
धुंधली सी यादें, साए की सूरत,
गुज़िश्ता लम्हों की गुमसुम हिकायत।
रुख़्सत हुईं जो महकती बहारें,
राहों में बिखरीं वीरान इबारत।
लब पे ठहरी हैं नज़्में अधूरी,
दिल में दबी हैं हसरतों की हरकत।
वो लम्हे, वो बातें, वो ख़्वाबों के नग़मे,
अब बन गए हैं बस एक हिकारत।
बरसों की गर्दिश, बरसों की दूरी,
सन्नाटों में है ग़मों की सियासत।
अब भी कहीं से सदा ये बुलाती,
"लौट आ, फिर से कर ले मुहब्बत..."-
शिक्षकों की व्यथा
ज्ञान का दीप जलाने निकले,आदर्शों की राह बनाए थे।
सोचा था कि पीढ़ी गढ़ देंगे,पर खुद ही बोझ उठाए थे।।
तनख्वाह कम, काम बेहिसाब,फिर भी कर्तव्य निभाते हैं।
जो समाज को सिखाते रहते,वे खुद अपमान ही पाते हैं।।
नीति नई, आदेश नित नए,पर सुविधा कोई मिलती नहीं।
शिक्षक का श्रम अनदेखा कर,सरकार कभी तो टलती नहीं।।
टूटे भवन, जर्जर कक्षाएँ,फिर भी उम्मीद जगाते हैं।
संघर्षों में जीने वाले,सबको राह दिखाते हैं।।
पेपर, रिपोर्ट और सर्वे,
अब शिक्षा से ज़्यादा भारी हैं।शिक्षक जो सम्मान के हक़दार थे,
अब बन बैठे सरकारी मज़दूर हैं।फिर भी सपनों की इस बगिया में,
हर रोज़ दिया जलाते हैं।शिक्षक हैं, हर ज़ुल्म सहकर भी,
ज्ञान की गंगा बहाते हैं।-
छाया
चुपके से आई, बिना आहट के, साँझ के साए में कोई ताके।
हवा में गूँजे धीमी फुसफुसाहट, कौन है वहाँ? कोई न जाने।
झील का जल काँप रहा क्यों? राहगुज़र पर परछाईं किसकी?
टहनी हिली, पर कोई नहीं, चाँदनी भी हो गई धुंधली।
दीवारों पर कुछ छायाएँ डोले, दरवाजे खुद-ब-खुद क्यों खोले?
मिट्टी पे हैं पदचिह्न दिखे कई, पर चलने वाला दिखे नहीं।
घड़ी की सुइयाँ रुकी हुई हैं, समय भी जैसे ठहरा सा है।
आईने में कोई और खड़ा, या ये मेरा ही अक्स नया?
कोई पुकारे नाम मेरा, पर आसपास कोई नहीं खड़ा।
सर्द हवा का हल्का झोंका, सिहर उठे मन, थमे धड़कन।
अँधियारे को चीर के देखूँ, कुछ दिखता है, कुछ खो जाता।
ये छाया है या कोई साया? रहस्य में सिमटा हर तारा।-
हम भी कभी बच्चों से दिल से जुड़ा करते थे बहुत ईमानदार हुआ करते थे .........पर
किसी ने बार बार बेईमान होने का एहसास कराया तो सच में बेईमानी करनी पड़ी।
एक बेईमान शिक्षक
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श्री राम
श्री राम आपका स्वागत करते
भारत के अयोध्या नगरी से
जिस दिन को आँखें तरस गई
पावन जल की प्यासी गगरी से
भारत में कितने पैदा हो गये
असुर और दानव बड़े बड़े
संहार करे हे जग के स्वामी
अपने ज्ञान रूपी इस पगड़ी से
श्री राम आपका स्वागत करते
भारत के अयोध्या नगरी से
देश हमारा जान से प्यारा
इसकी रक्षा आप करें प्रभू
जैसे आपने जूठे फल थे खाये
उस प्यारी माता सवरी से
उस तरह आपका स्वागत करते
भारत की अयोध्या नगरी से।
..…कंचन प्रभा
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पृथ्वी की ऊपरी परत
किसकी बनी होती है?
1. निकेल और लोहा
2. सिलिका और मैग्नेशियम
3. सिलिका और एल्यूमिनियम-
वक्त कितना अलग अलग सा लगता है
कल ही सुहाना था मौसम आज वीराना सा लगता है
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