Kanchan Khatabia   (sisaktirooh)
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Joined 22 October 2018


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Joined 22 October 2018
7 FEB AT 18:05

फ़ुरसत के दो लम्हे अब उनके पास नहीं,
मानो तो अब हम उनके ख़ास नहीं
टुकड़ों में उनकी आवाज़ सुनकर बस टुकड़ों सी जी रहीं हूँ।

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7 FEB AT 17:50

गीले पन्नो सी तेज लहरों में कुछ देर टिकी,
फिर कुछ भारीपन सा मुझे तार-तार कर गया।

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5 SEP 2024 AT 13:36

ये मेरी उदास आँखें हैं
या दिल से उतरते तुम?

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27 MAY 2024 AT 14:30

I keep on begging him for that one last time not to hurt me, not to invade in my mental peace and leave me alone but his persistence absurd behaviour(which he believes all unintentional) keep on knocking me down the moment I think I have healed from my last trauma.

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27 MAY 2024 AT 13:11

वो पूछते हैं, कैसी हो तुम?

नज़र मिली, होंठ हंसे और आँखों से झरना बहनें लगा|

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17 MAY 2024 AT 14:36

ख़ामोश हुए वो यूँ इस कदर,
रोंगटे भी रूह से सवालात करने लगे।

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8 MAY 2024 AT 10:11

इंतज़ार है अब उन्हें हमारे सो जाने का,
जिनका प्यार हमे रात भर सोने नहीं देता था।

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6 MAY 2024 AT 17:30

Restricting yourself not to crave for him is next level intimacy.

Relationship_roles

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6 MAY 2024 AT 14:42

अफ़सोस भरी मोहब्बत

वो आए ज़िंदगी में अरसों के बाद,
जैसे ख़ुशी बरसी हो, बरसों के बाद।

लगा यक़ीनन रुकेंगे वो इस दस्तक-ए-ख़ास में,
रूह खिल उठी फिर उनके नूर-ए-लिबास में।

मिलकर उसे खिलने लगी वो गुलाब सी,
हर शाम होने लगी उसकी एक शबाब सी।

वो भी जाम बनाकर महख़ानो में खोने लगा,
हर रात उसकी बाहों में उसका होने लगा।

वो भी खुली आँखों से अधूरे इश्क़ को जीती रही,
बिन किसी रंजिश उसके अफ़सो(guilt) को पीती रही।

फिर एक रोज़ वो तस्लीम(admit) कर बैठे,
के बहक गये थे कुछ ऐसा यक़ीन कर बैठे।

खड़ी रह गई वो सिले लभ और सीने में चुभन लेकर,
मानो खड़ी हो भरी महफ़िल में कफ़न लेकर।

अब उसके दूर जाने का वक़्त हो चला है,
दिखावे सा मुस्कुराती, किस बात का गिला है?

सारा जोश, होश में तब्दील हो गया,
मोहब्बत का मारा दिल फिर से ज़लील हो गया।

अफ़सोस भरी मोहब्बत का अब वो ख़ास नहीं,
रूह चूम ले ऐसे आलम में कोई, अब ऐसी प्यास नहीं।

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23 MAR 2024 AT 16:32

ताउम्र रखती रही उसकी ज़रूरतों का ख़्याल,
यकीनन कभी मैं उसकी ज़रूरत ना बन पाई।

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