Kanchan 'Divy'  
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वक़्त को वक़्त दो,वक़्त को आने में वक़्त लगता है।।
Joined 23 July 2019


वक़्त को वक़्त दो,वक़्त को आने में वक़्त लगता है।।
Joined 23 July 2019
20 OCT 2023 AT 19:03

कितना डूब सा जाता हैं ना मन ये सोचकर..
जिन उंगलियों ने हमे सहारा दिया चलने के लिए
अब कोई नही है बुढ़ापे में उनका सहारा बनने के लिए।।
कभी चाव से बिठाकर जो ताज़ी रोटी खिलाती थी।
कोई नही है अब इस उम्र में "आप बैठो मैं पकाती हूं कहने के लिए"।।
स्कूल से जरा देरी पर जो दरवाजे पर बैठी मिलती थी।
अब नही जा पाती उनसे महीनो मिलने के लिए । मेरी जरा सी तकलीफ में जो परेशान हो जाया करती थी।
अब नही हैं कोई बुढ़ापे के दर्द में हाथ पकड़ने के लिए।।
कितना मुश्किल होता है ना लड़की होना। अपने ही घर में बस एक मेहमान होना ।।

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10 JUL 2021 AT 14:42

हर तरफ अँधेरा, हर तरफ खामोशी
याद आती हैं बस अतीत की सरगोशी।।
अमावस की रात, हर तरफ अँधेरा
दिल में भी छाया है पुरानी बातों का साया घनेरा।।
कुछ ऐसा छिन गया है मेरे पास से
कलनाद छिन गया हो जैसे नदियों के साथ से।।
मायूसी दर्द हर तरफ हार है
खो गए सारे अपने नही अब कोई साथ है।।
मेरी ही मंजिल रही ना मेरी
हर राह कहती है क्यों कर दी देरी।।
एहसास- ए- जुश्तजू दफन हो गया
फूलों की जीनत ही भँवरो का कफ़न हो गया।।
जल गया शमा का परवाना
खत्म हो गया अब हर अफसाना।।

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4 JUN 2021 AT 11:21

राम नाम कहो राम ही राम
राम नाम इस जीभ का काम।
ऱाम नाम में चारो धाम
कह ले मनवा जय श्री राम।।

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12 NOV 2020 AT 20:40

किसको रातों में जगाओगे मेरे बाद
कहाँ जाकर जी बहलाओगे मेरे बाद ।
अब तो देखकर मुझको छुप जाते हो
फिर किसको ये नाज़ दिखाओगे मेरे बाद।।
कौन लगाएगा तुम्हे अपनी बाहों का तकिया,
खुद को किस तरह सुलाओगे मेरे बाद।।
इस तरह प्यार से बुलायेगा कौन तुम्हे,
मेरी चाहत को कैसे भुलाओगे मेरे बाद।
सिर रखकर ज़मीन की गोद में सो जाऊंगी जब,
'जान' फिर किसको बनाओगे मेरे बाद।।

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9 NOV 2020 AT 23:44

आज फिर भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा
आज फिर एक नस्तर इस हृदय में चुभ गया,
पर इस विरही राग को हर कोई अनसुना छोड़ गया
कागज पर रोती दास्ताँ उतारने को दिल मचल गया।।
पर लिखते- लिखते ना जाने क्यों कलम रुक गया
क्या लिखूं ??????
जन्म से उपहारस्वरूप मिली जमाने की बंदिशे
या फिर नाप दी गयी सरहदे।।
आँख खुलते ही तिरछी निगाहों से एक हीन एहसास हुआ लड़की होने का....।।
और फिर उम्र के साथ ये बढ़ता ही गया।।
हर कदम पर असुरक्षा का बोध,
या जमाने के द्वारा प्रतिपल किया गया विरोध,,,
गर्भ में पले बोझ को डोली में उतारा गया।
और फिर उसे ही निर्मम जलाया गया।।
क्या लिखूं???????

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23 OCT 2020 AT 20:59

जब प्रेम में प्रियतम मिले।
पंछी सा उड़ जाए।।
गर विपदा में हो फँसे
फिर काटे ना कट पाए।।
अज़ब गति हैं समय की
हालातो पर निर्भर।
पर हर समय है बीतता
बंदे बस तू सब्र रख।।

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16 OCT 2020 AT 22:18

डर नहीं मुझे जमाने के रिवाजों का,
लोगों की हंसी उनकी बातों का।
बस डरती हूँ मैं हर उस ख्वाब से,
जहाँ मेरे साथ तेरा जिक्र ना हो ।।
डर नहीं मुझे इन सर्द रातों से,
हूँ बेपरवाह मै हर जज़्बातों से।
बस डरती हूँ मैं हर उस बात से,
जिसमें तुझे मेरी फिक्र ना हों ।।

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9 OCT 2020 AT 20:43

मेरी बंजर भूमि पर रिमझिम सी फुहार हो तुम।
तड़पते हुए दिलों के मिलन की आस हो तुम।।
अमावस के बाद पूनम की रात हो तुम।
मैं बस जिस्म मेरी हर एक साँस हो तुम।।
मेरे मुकम्मल जहाँ की बुनियाद हो तुम।
मेरे लिए बहुत खास एहसास हो तुम।।❤️

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2 OCT 2020 AT 21:40

उठो! उठो और शस्त्र उठा लो तुम
कब तक औरो की ओर निहारोगी ।
तुममें सम्बल है, तुम शक्ति हो,
अब दुर्गा बन जाओ तुम।।
ये कलयुग का मानव हैं
मानव के रूप में दानव है।
जब तक तुम सहती जाओगी
तुम इनको रोक न पाओगी।।
उठो! उठो और काली बन जाओ तुम।
क्योंकि अब नारायण भी न आएंगे।।

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1 OCT 2020 AT 23:24

जब भी सहम सी जाती हूं,
अपनी ही उलझनों के जाल में।
कुछ कह भी नही पाती किसी से,
शायद वो समझ ही नही पाते रिश्तो के भ्रम जाल में।।
थक- हार कर कुछ चिड़चिड़ा कर,
बैठ जाती हूँ अपना बोझिल मन लेकर।
तब बस एक ही साथी नज़र आता है
मेरा कागज़ और कलम।।
सैकड़ो सैलाब भावनाओ के मन में,
एक-एक कर माला गूंथ लेती हूं।
और तोड़ देती हूँ सारे बाँध,
उन्मन मन कभी विह्वल भी ही जाता है
जैसे किसी अपने को पाकर गला रूंध सा जाता है।।
बस लिखती जाती हूँ हर दर्द को कागज पर
औऱ वो ऐसे समेट लेता है मुझे।
जैसे कोई अपना गले लगाकर
एक ढांढस बँधाता हैं।।
-कंचन'दिव्य'

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