Kamran Zafar  
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Joined 21 February 2020


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Joined 21 February 2020
11 MAR AT 21:26

अब चाहें दुनिया हों मेरे कदमों में मुझे शाद नहीं होना
मुझसे पूछे कोई तो हाल कह दूं मुझे बर्बाद नहीं होना

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20 FEB AT 21:05

मेरा जाना तुम्हें गर सुकून दें फिर में कैसा यहां खड़ा रहूं
बात मोहब्बत की हैं यार ये मोल भाव नहीं कि अड़ा रहूं

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20 FEB AT 12:05

इक मोड़ आगे वीरानियों का वहां से सबको गुजरना हैं
कल तू भी होगा तन्हां वहां मेरा तो ये सोचकर मरना हैं

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9 FEB AT 0:33

गर आख़िरी सलाम पर सब ख़त्म हों जाए तो कर देना
ख़्वाहिश हैं दर्द तुम्हारें जाने का ये बस ज़िंदगीभर देना

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8 FEB AT 22:33

इक मुसाफ़िरखाने सी दास्तां मैं आबाद कभी वीरान सी
कभी रहती चहल पहल और कभी पलभर में बेज़ान सी

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4 FEB AT 12:15

ये सबकुछ मिला भी तो ऐसे कि कुछ भी ना मेरा हुआ
था चराग़ों से सौदा मेरा फ़िर भी ताउम्र ना सवेरा हुआ

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17 NOV 2024 AT 0:31

मुझे मायूस करके जो इक रक़ीब की महफ़िलें सजाएं
ऐसे यार से बेहतर कोई हादसा हों और मौत आ जाएं

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22 OCT 2024 AT 16:38

यहां जेब खाली हों तो फ़िर साएं भी रक़ीब नज़र आए
देख के बिखरती दुनिया अपनी कैसे न आंख भर आए

ज़फ़र हाथ छोड़ जाते हैं बीच राह जो हमसफ़र होते हैं
हालात-ए-हाल ये नहीं रहती कि लौटकर यार घर आए

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6 OCT 2024 AT 15:43

हम खोल देंगे दरवाज़ा ए दिल सुना तुम्हें रिहाई चाहिए
किस शोक में हों डूबे तुम बता किस मर्ज़ दवाई चाहिए

ज़फ़र सोचा हैं कि तुम्हारी हर ख्वाहिश को पूरा करुगा
तुम बे-झिझक कान में कह दो हमसे गर जुदाई चाहिए

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2 OCT 2024 AT 19:54

तुझे उल्फ़त में सिर बैठाने से रिश्तों की लाश ढोंने तक
तेरे साथ मुस्कुराने से जां तेरे बाद घुट-घुटकर रोने तक

ज़फ़र चाहता रहा हूं तुमको कभी यार गलत नहीं कहा
मैं मरता रहा हूं चाहें तन्हां तुझे कतरा कतरा खोने तक

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