की दीवार पर जब सीलन दिखती है,तब मालूम पड़ता है । कि कतरा कतरा कर पानी, रिस रहा था अंदर ही अंदर धीरे-धीरे कही । मुझे शक है कि, ऐसा सिर्फ दीवारों के साथ होता है। मैंने देखे हैं वो सकले, जो कतरा कर रह जाते है। आंखों से रिश्ती नहीं ,अंदर ही अंदर टूटती है। दीवारों की तरह घुटते-घुटते, एक रोज वह भी डह जाती है।