Kamini   (Kamini)
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Joined 7 October 2022


Joined 7 October 2022
8 NOV 2022 AT 23:04

घूँघट मुखड़े से हटाओ पिया
मैं मंद -मंद सी मुस्काउँ ज़रा
तुम उतार दो गहने लाज़ के
मैं शर्म का पर्दा गिराऊं ज़रा

तुम अंग -अंग निहारो ऐसे
मैं भी धीरे से शरमाऊं ज़रा
तुम सरकाओ तो पल्लू मेरा
सेज में तेरी बिछ जाऊँ ज़रा

तुम खोलो तिजोरी यौवन की
मैं पिया तुमको लुभाऊँ ज़रा
छलकता ज़ाम लबो से पियो
हुस्न से अपने बहकाउं ज़रा

अंग- अंग शोला है मेरी जान
आज तुमको मैं रिझाऊँ ज़रा
सर्द पड़ी है रात सदियों से
चिंगारी आज भड़काऊँ ज़रा

जाने कब से सूखा पड़ा है
हुस्न का पानी बरसाऊं ज़रा
प्यासे हो मेरी जान तुम कबसे
आज प्यास तेरी बुझाऊँ ज़रा

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