Kameshwar Agnihotri   (Kameshwar Agnihotri)
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Joined 8 October 2019


Joined 8 October 2019
7 NOV 2020 AT 21:08

"दुख सुख की तो बात करो मत"

भला बुरा जैसा भी हो, समय तो बीत ही जाता है|
पतझड़, बसंत, ऋतुकाल कोई हो, आता है - चला जाता है |
दुख सुख की तो बात करो मत,
दुख जाता है, खुशियां देकर, सुख तो - बहुत रुलाता है|
याद आती हैं बीती बातें, मन यूं ही भर आता है|
सहज काल में, सब ही सहज हो, जो माँगों मिल जाता है|
कठिन-काल ही तो व्यक्ति को, उसकी औकात बताता है|
जो कभी जाना ही नहीं था, वह भी समझ में आता है,
जुगनू भी तारा लगता है, जब घना अंधेरा छाता है|
उमड़-उमड़ आती है विपदा, तो राम ही राह दिखाता है,
दुख जाता है, खुशियां देकर, सुख तो - बहुत रुलाता है|
याद आती हैं बीती बातें, मन यूं ही भर आता है|

~कामेश्वर अग्निहोत्री

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1 NOV 2020 AT 11:40

ON DOTAGE
Old is gold,
But this privilege is rare,
All obligations are over,
And there is time to spare.
Only the beneficiaries enjoy,
This God's grace here.
Years count for little,
When the mind is young and fair.
A seasoned person with elevated soul,
Has access to ecstasy anywhere.
When the conditions are adverse,
And the oddities there,
A stable mind sprinkles,
Pearls of peace everywhere.
And the flowers bloom,
In the desert air.
The old is gold
But, the privilege is rare.

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25 OCT 2020 AT 11:05

विजय दशमी के अवसर पर
हर वर्ष विजय दशमी को हम, मेला देखने जाते हैं |
मिलते हैं अपने मित्रों से, मस्ती और मौज मनाते हैं|
राम की जब सेना आती है, ढोल मृदंग बजाते हैं|
मिलकर सब एक कंठ से, जय श्री राम का घोष लगाते हैं|
राम चन्द्र जी फिर अपने धनुष पर बाण चढ़ाते हैं |
विशाल-काय रावण को, भूतल पर ले आते हैं|
सब जन मिलकर, ज़ोर ज़ोर से, जय श्री राम बुलाते हैं|
फिर, लेकर कुछ मिष्ठान, पकौड़ा और जलेबी, अपने घर को जाते हैं|
कुछ सूझवान सब देख समझकर, बच्चों को समझाते हैं|
कि व्यक्ति चाहे विद्वान भी हो, गुणवान भी हो, बलवान भी हो
पर मिथ्या, अहम, अभिमान भी हो, और नारी का सम्मान न हो,
तो रावण ही कहलाता है,
और हर वर्ष विजय दशमी को,
पुतला बन जल जाता है,
बस पुतला बन जल जाता है|
~द्वारा
कामेश्वर अग्निहोत्री

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2 OCT 2020 AT 18:11

THE World Resort
Our life span-long or short,
Our stay is measured-
in this World Resort,
Oddities apart-the stay is smart,
Here dishes are served-of all sort,
Of tastes-sweet, bitter, sour or salt,
Here men come for a treat-with open heart,
Strangers they meet-friends they depart,
With sunken face-and heavy heart,
And bid their farewell-to this world resort,
And bid their farewell-to this world resort.

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4 SEP 2020 AT 23:07

राष्ट्र के हे करुणाधार, आओ मिलकर करें विचार,
देश है मझधार में,भविष्य अंधकार में,
प्रकाश की तलाश है,ज्ञान का ह्रास है |
सत्ता की लालसा ने, सत्य को लपेट लिया,
जो भी जिसके हाथ लगा, सफाई से समेट लिया,
शेष जो अवशेष है, भूख है प्यास है,
देश है मझधार में,भविष्य अंधकार में,
प्रकाश की तलाश है, ज्ञान का ह्रास है |
दृष्टा के अभाव में, सब कुछ दिशा हीन है,
धृष्टता उजागर है,शिष्टता मलिन है,
विपत्तियों को भांपकर,मुँह अपना ढांप कर,
शिक्षक भी है सो रहा,अरे शिक्षक को जगाओ तुम!
कोई घंट नाद बनाओ तुम, वही तो एक आस है,
देश है मझधार में, भविष्य अंधकार में,
प्रकाश की तलाश है, ज्ञान का ह्रास है|

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18 JUL 2020 AT 18:12

धौलाधार
धर्मशाला की पृष्ठभूमि में, खिली हुई सी हिम रेखा,
कुछ भी तो नहीं देखा उसने जिसने धौलाधार नहीं देखा |
पानी पिया नहीं गंगा का, माँ का प्यार नहीं देखा,
कुछ भी तो नहीं देखा उसने जिसने धौलाधार नहीं देखा |
यह हर आगंतुक से प्यार करे,निज शीतलता से ताप हरे,
पंखा झूलें वन के तरुवर,मस्ती माने सारे वनचर,
सेवा भाव में होकर तत्पर,करें वंदना मिलकर मुनिवर,रंग बिरंगे पंख पखेरु,झूमे करें सुमंगल गान,हाँ यह भूमि है देव स्थान,
पल पल, छिन छिन, अपनी छटा से,रवि बदले इसका परिधान,
नूतन शान बिखेरे क्षण-क्षण,ऐसा शृंगार नहीं देखा,
कुछ भी तो नहीं देखा उसने जिसने धौलाधार नहीं देखा |
इसकी झीलों, झरनों नदियों से, जो बेहता है जल सदियों से,
कहता है जग के कवियों से,नव रचना का संचार करो,
तज जाति धर्म भाषा बंधन,सागर तक जाकर प्यार करो,
रोम रोम करदे रोमांचित,ऐसा दिलदार नहीं देखा,कुछ भी तो नहीं देखा उसनेजिसने धौलाधार नहीं देखा|

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14 JUL 2020 AT 12:47

Joys and sorrows from the same source spring
As the lightening thunders, summer showers bring.
The self same fire that cooked my food,
A day at last lit my pyre
And from the mortal soil I made good.
I am as a frolicsome lamb,who in the laps of his master. 
When loved and lured, sounds a bleet.
But the touch of the hand that thrills him,
A day at last kills him,
And serves his meet.
Then where_fore dost thou fear my friend,
And of  what should I be scared ,
What was doomed,is deemed to be, 
Inspite of ,all sweat,and fret and care .
Ding ding ding,as the church bells ring,
In autumn and spring.
Make merry and sing,
As the honey bees have sting,
Joys and sorrows from the same source spring

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