सून मुसाफिर आ देख गई तेरी मंजिल
इस सुकून की ख्वाहिश थी ना बरसो से
दूर कही हो बसेरा और ऐसा उजला सवेरा
वो शेहर वो शोर गुल ना आयेगा याद कभी
बस यही बस जाने की ख्वाहिश मे
कोई खरिदार ना धुढना तेरे पुराने मकान का
पितरो ने तेरे ऐसे ही घर बसाया था
जहाँ मेरे पुरखो का कभी घर हुवा करता था
-
कल इंतेकाल पे मेरे फसाने कोन सुनायेगा
ज़ो मिल जाता अवसर मुझे मेरी पटकथा लिखने का
तो मै उसमे तुम्हारा किरदार कुछ खास लिख देता |
-
सब्र मांग कर मैंने तुझसे पीर की जुदाई मांग ली
नशा ज़ो उतरा शहर ए खामोश मे पाया खुद को-
कुछ सम्मान सहुलीयतो मे खरीदे जाते ऊचे दामो पर
चंद किरदारो की निलामी मे रसूकदार लोग नहीं जाते-
आज वाचले पाढे सर्व आप्तव्यस्काचे
ऋणानुबंध जपले आहे थोडे ऋण फेडण्याचे.
बंधा च्या बेरीजा अन वजाबाक्या बंधा च्या
सर्वच उणे जीर्ण अन जुने नाते मना मनाचे
ऋण कसली शोधता कुणी कुणास काय दिले
असली तर भाग दे नसली तरी कर त्याले गुणे
नात्याच्या या गणिताची आहे खोल खोल दरी
सर्व सूत्र पाठ त्याचे ऐसे मोल कोन करी-
मुझे देख न अनजाने मे अपने शौक बदल बंदे
"हैसियत"हू मै फटी जेब भी कर्जदार हैं मेरी-
मै कौन हू आज मुझे यही सवाल हैं
धुंडने निकलू जवाब फिर एक बवाल हैं-
वृतपत्राच्या गर्दीत सारे मुद्दे हरवले
बातम्याचे पान आता जाहिरातीनी रंगवले
-
फितरत यहा सभी बेईमान लिये बैठे हैं
मै बदनाम हू क्यू की मेरा नाम शराब हैं-
ज़ो ना केह दु तो गुनाहगार मुझसा ना होगा
ज़ो हा केह दु तो फारिश्ता मुझ सा नही-