तू मुसाफ़िर है रात का फिर क्यों सवेरा चाहता है
कर बेवफ़ाई जमीन से आसमाँ में बसेरा चाहता है
हर एक नज़रों का अलग नज़रिया होता है जमाने में
जरूरी नहीं वो भी तुझे चाहे जिसे मन तेरा चाहता है
शिकायत है तुझे अगर उसकी यादों के उलझनों से
फिर क्यों हर वक़्त उसकी चौखट पर डेरा चाहता है
देख बारिश की बूंदे भीग जाती है अक्सर आँखें तेरी
फिर भी न जाने क्यों काले बादलों का घेरा चाहता है
तू मुसाफ़िर है रात का फिर क्यों सवेरा चाहता है
कर बेवफ़ाई जमीन से आसमाँ में बसेरा चाहता है
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