ज़िम्मेदारी के फूल थोड़ी जल्दी खिल जाते है कुछ शाखाओं में
वक़्त से पहले ही लंबे सफर का बोझ है लड़खड़ाते नन्हें पाँव में-
लफ्ज़ो की जरूरत नहीं आंखे सबकुछ कहती है
बिखरे हुए उम्मीदों में भी चाहत ज़िंदा रहती है-
ज़िन्दगी में क्या जीत है क्या हार है
एक ख़्वाहिश पूरी तो दूसरी तैयार है
कोई सब कुछ पाकर भी बेचैन सा है
कोई सूखी रोटी से ही खुश हर बार है-
तू मुसाफ़िर है रात का फिर क्यों सवेरा चाहता है
कर बेवफ़ाई जमीन से आसमाँ में बसेरा चाहता है
हर एक नज़रों का अलग नज़रिया होता है जमाने में
जरूरी नहीं वो भी तुझे चाहे जिसे मन तेरा चाहता है
शिकायत है तुझे अगर उसकी यादों के उलझनों से
फिर क्यों हर वक़्त उसकी चौखट पर डेरा चाहता है
देख बारिश की बूंदे भीग जाती है अक्सर आँखें तेरी
फिर भी न जाने क्यों काले बादलों का घेरा चाहता है
तू मुसाफ़िर है रात का फिर क्यों सवेरा चाहता है
कर बेवफ़ाई जमीन से आसमाँ में बसेरा चाहता है-
तुम सिर्फ एक शब्द हो उनके लिए
जो तुम्हारे लिए एक पूरी कहानी है
तुम कहते हो आँसू है तुम्हारे आंखों में
उनके लिए सिर्फ बहता हुआ पानी है
समेटने का वक़्त नहीं मिला उनको ही
जिनके लिए बिखेर दी पूरी ज़िंदगानी है
उनके ही नज़रो में क्यों लाचार हो तुम
जो तुम्हारे नज़रो में अभी खानदानी है-
झूठ के सहारे मिली कुछ पल की अच्छाई
खत्म कर देती है जीवन भर की सच्चाई-
अपने ख़्वाबों के सफर को इतना क़ीमती बना दो की
कोई भी रुकावट कोई भी तकलीफ उसे खरीद न सके-
मन का बादल बेचैन है आँखों से बरसात होने दो
घबराते हो अगर उजाले में तो थोड़ी रात होने दो
क्यों सोचना की कोई क्या सोचता है तुम्हारे लिए
अच्छा है गैरों की महफ़िलो में अपनी बात होने दो
दिख जाए अगर कभी मत छुपाना तुम अपना दर्द
ज़ख्म देने वाले से तुम ज़ख्म का मुलाकात होने दो
मत सोचो कभी बुरा अपनी ज़िन्दगी के बारे में तुम
मत झुकना कभी चाहे जितने बुरे हालात होने दो-
गुजर जाती है ज़िन्दगी रूठे रिश्तों को मनाने में
कमी कहाँ रह जाती है एक घर को घर बनाने में
गुजर जाती है पूरी ज़िन्दगी दौलत ही कमाने में
कमी कहाँ रह जाती है एक घर को घर बनाने में
आज कल दिखावा अपनापन बन गया जमाने में
कमी कहाँ रह जाती है एक घर को घर बनाने में-