Kamal   (Kamal)
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Joined 2 January 2020


Joined 2 January 2020
11 MAR 2023 AT 21:21

यूँ बेहिसाब हसरतों का सिलसिला है भी तो क्या?
यूँ गफलतों का हल तमाम है भी तो क्या?
है असर बेअसर मगर बेअदबी भी नही,
यूँ तो खुदा है यहाँ, गर न होता भी तो क्या?

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30 JAN 2023 AT 20:32

सब्र है कोई
मेरी जल्दबाजी का,
मेरी बढ़ती शरारतों का|
असर है कोई
मेरी बातों का,
मेरी बढ़ती मुश्कुराहटों का|
जिक्र है कोई
मेरी इंतजारी का,
मेरी बेहिसाब यादों का|
अगर है कोई अपना अपनों सा,
वो अक्स होगा मेरे जज्बातों का|

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22 DEC 2022 AT 2:08

अल्फ़ाज़ खामोश है पन्नों पर तो उतर ही जाएंगे,
बताना किसको है ये तो बात ही नही है,
असल माजरा,
खामोश बैठ जाऊँ तो भी समझने वाले तो समझ ही जाएंगे,...

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22 DEC 2022 AT 1:50

इन अल्फ़ाज़ों को,
काग़ज़ पन्ने या कुछ और
जो कहते होंगे तुम्हारी भाषा,
लाकर दो मेरे इन,
कमबख्त बर्बाद इरादों को,

आलम वजूद ढूँढ रहा किसका,
ये कमल की कलम बतायेगी नहीं,
मौसम अजीब है खुमारी अजीब है,
अजीब तो अल्फ़ाज़ हैं
फिर भी बन जाती किताब है,

किताब,
किताब यूँ तो पढ़ लेते होगें न आप,
नहीं अगर तो भी
वक्त बर्बाद कर ही लेते होंगे,
उम्मीद है कि
कोई उम्मीद बाकी बची न हो,

पढ़ लिया इतना खास कुछ यहाँ लिखा था ही नही,
लिखना था मुझे तो गलती मेरी थी ही नही,
आपने पढ ही लिया है तो शुक्रिया,
फिर से आ जाओ पढ़ने हमें तो भी से शुक्रिया,

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22 DEC 2022 AT 1:23

आंखों में सारा जहान समेट बैठा हूँ,
हसरतें अधूरी मैं तमाम लिए बैठा हूँ,
यूँ तो दो चार होता हूँ,
मैं रोज अपनी ही गफलतों से,
मैं फिर भी तेरी तस्वीर जिन्दगी,
साफ करने को दागदार लिए बैठा हूँ,.....

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22 DEC 2022 AT 1:03

तमाम कायदों से अलहदा नज़र आती है,
बेसब्री में सब्र समझ आती है,
नासमझी में समझदारी समझ आती है,
यूँ तो हजार दफा जिन्दगी मुश्कुराती है,
मगर नन्ही मुश्कान
सब फरेबों से अलहदा नज़र आती है,

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13 DEC 2022 AT 22:00

फसाने हसाने को कभी कभी,
तलाशता फिरता हूँ मैं,
गालिब अपने ही मकबरे में,
मिरी कब्र तलाशता फिरता हूँ मैं,.

अजीब है गफलत,
कि तलाश बाकी है अभी,
यूँ तो बन्दिशें हजारों मुखालफत करें,
रंग दो चार मिले तो सही,
कभी तो मिरी महफिल जमें,.

हर्फों में उलझन
आखरत में मिली है मुझे,
कभी समझे खुदा,
सर झुके तेरे सजदे को,
मैं जब भी तेरी इबादत करूँ,.

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14 NOV 2022 AT 1:44

थोड़ा ठहर अंधेरे के पास उजाले की तलाश में,
पानी से दूर प्यास की तलाश में,
तलाश जाहिर है कि रात हो गई लगती है,
सुबह तो निकल आयेगी नई, नई इक रात की तलाश में,

ए रात के हमसफ़र,
थोड़ा ठहर अंधेरे के पास उजाले की तलाश में,
गफलत अजीब कि उलझन सुलझा ली जाए,
तमाम किस्से दरकार है इक कहानी की तलाश में,.....

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4 NOV 2022 AT 23:05

ख्वाबों के दरबदर अपना,
हम आशियाना बनाए बैठे थे,.
बर्बादी का आलम था,
हम जन्नती ख्वाब सजाए बैठे थे,.
कुछ रोज़ चलता रहा यूँ ही,
सफर ऑंख मिचौली का,.
थी तलाश समंदर से गहरी,
दुनिया में खुद की हमें,.
और हम, एक नाम के पीछे,
सारी जिंदगी बीता कर आये थे,.....

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16 SEP 2022 AT 23:43

जिक्र हवा सा होगा कहीं,
थोड़ी बरसात हो जाने तो दो,.

कैसी हलचल अजीब बवंडर है दिल में,
समंदर सी गहरी इन लहरों में डूब जाने तो दो,.

तलब बेपरवाही सी होगी,
लम्हे भर करीब आने तो दो,.

जिन्दगी नसीब हो आएगी,
दुआओं में असर थोड़ा आने तो दो,.

थम जाएगा तूफान ये पहले सुबह के,
बैचेन हुए सवालों के जवाब ज़रा आने तो दो,.

होगा जिक्र हवा सा इस कहानी का,
थोड़ी-थोड़ी बरसात हर शहर हो जाने तो दो,..

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