तुम पहले काफ़ी दूर थे
दूरी मीलों में थी
फ़िर भी न जाने कैसे
तुम बेहद करीब थे।
अब काफ़ी नज़दीक हो
कदमों के फासले हैं सिर्फ़
फ़िर भी न जाने कैसे
योजनों दूर लगते हो।
#तुम-
जो टूट के बिखर जाए वो हम नहीं
अरे हम तो लिखते हैं ,
कुछ अहसास... read more
मुझे घर की मुर्गी
समझने लगा था वो
मैंने भी
वो बाड़ पार लगा दी।
जिसके आगे
उसे लगता था
कभी नहीं जाऊंगी।-
ख़ुद को इतना कम आंकना
क्या उसी ने सिखाया
जिसने तुम्हें
तुम्हारी कीमत समझायी थी।
अरे पगली
गर उसे पता है
तुम बेशकीमती हो
तो फ़िर
ख़ुद को इतना कम क्यों आंकना?
-
(२)
असली "प्रॉस्टिट्यूट" तो ये हैं
पता है प्रॉस्टिट्यूट कौन होते है?
वो लोग जो अपने हुनर का इस्तेमाल गलत चीज़ों के लिए करते हैं उन्हें प्रॉस्टिट्यूट कहा जाता है।
और ये जो जिले के प्रधान बन के बैठे हैं
ये हैं जिले के असली प्रॉस्टिट्यूट।
एक फोटू खिंचवाएंगे
सिर्फ उन्हीं लोगों के साथ
जिनसे बंद कमरों में
या फोन के तारों के जरिए
कुछ लिया गया था।
और ये हैं देश के कलेक्टर।
हाय रे मेरी डेमोक्रेसी।
थू है तुझ पर।
जो ऐसे रिश्वत के डकैतों को
कलेक्टर बनाया।
लिखते हुए सोच रही हूं
कहीं अगर ये पंक्तियां
उन लीचड़ कलेक्टरों के चमचों के पास पहुंच गई
तो न जाने मेरे जैसे लिखने वालों का
सच्चाई दिखाने वालों का क्या होगा।
उन्हें तो कभी मिल ही नहीं पाएगा
द एलिट सरकारी नौकरी!
-
लोग कलेक्टर की तैयारी करते है,
लोग तब एकदम सीधे और मासूम होते है,
और फिर दौर आता है
जब वो कलेक्टर बन जाते हैं
जो पहले एंटी करप्शन का तकाजा देते थे
वो वही फिर बात बात पर घूस खाते हैं।
कोई हो गरीब क्या फर्क पड़ता है
कोई हो हुनरमंद क्या फर्क पड़ता है
कोई हो स्किलफुल क्या फर्क पड़ता है
ऐसे रिश्वत के ठेकेदारों को
ये सब से क्या फर्क पड़ता है
कि कोई कितनी दूर से
एक क्षणिक इनफॉर्मेशन के आस से भी पहुंच चुका है
क्या फ़र्क पड़ता है
इन भीखमंगे नंगे लोगों को
जो बाहर से तो ओहदों का लबादा ओढ़े हुए हैं
पर अंदर से बिल्कुल निर्वस्त्र
निहायती बेशर्म!
(१)
-
बुरी तरह फंसकर,
वो बेचारी चींटी बन चुके हैं
जो गुड़ का पाग
बड़े चाव से खाने आई थी
पर अब,
न खा पा रही है,
न जा पा रही है।
उसका मरना तय है।
इसी मिठास में घुट घुट कर।-
कभी कभी सोचती हूं
क्या मेरा कोई वजूद ही नहीं?
या वजूद सिर्फ़ तब तक था,
जब तक मैं उससे दूर थी
पहले की ही बात है,
हम कई हज़ार मील दूर होकर भी
सिर्फ़ एक फोन की दूरी पर थे
अब एक दिन से भी कम दूरी पर है,
पर सैकड़ों फोन की दूरी पर!!!
वो अब ये दूरी तय नहीं कर पाता।
सबसे महत्वपूर्ण बात
वो ये दूरी अब तय नहीं करना चाहता।
-
💌
"........."
अंदर एक सुर्ख, चटक
लाल गुलाब था,
पर ये क्या!!!!
अधूरा गुलाब।
उस पेज पर लिखा था
ये अधूरा गुलाब
मेरे पूरे गुलाब के लिए।
पर अधूरा है,
क्योंकि तुमने मुझे हां नहीं कहा।
तुम्हारा अधूरा प्रेमी!
-
I am free to fly that sky...
Beyond your dismay
Beyond your touch
Beyond your expectations
Beyond your love
I always worshipped you
But now I am free
Wish my soul rest in peace.-
मैंने तो सिर्फ़ उसका साथ मांगा था,
सिर्फ़ इतना कि वो मुझे सुन ले,
सिर्फ़ इतना कि मेरा सिर उसके कंधे पे रख लूं
बस यही एहसास मांगा था,
वो मुझसे सिर्फ़ रात के चौथे प्रहर मिलता है...
मैं सुबह हूं न उसकी
इसलिए वो मुझसे कभी खुलकर नहीं मिला करता
"कभी रात और दिन मिले हैं कहीं"
रात ने डांट दिया।-