दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम ।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे !
दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे "हरि" को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला ।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है !
राष्ट्रकवि "रामधारी सिंह दिनकर"- Kalyani poet
24 APR 2019 AT 11:40