Kalpana Tomar  
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Joined 6 July 2019


Joined 6 July 2019
8 MAY AT 18:50

दो दिन की जिंदगानी, जीवन लगता है सपना।
ये घड़ी न जाएं बीत, कभी तो आन मिलो सजना।

बारिश हो या रात अंधेरी, या फिर भरी दोपहरी।
मिलने तुमसे आ जाऊंगी, एक इशारा करना।

मन उपवन में पतझड़ फैला, तुम बसंत बन आना।
नवपर्ण प्रस्फुटित हो जाएं, तब प्रीत रंग रस भरना।

मिलो तो बतरस पान करें हम, बातों के घट रीते।
मूक वेदना बरस जायेगी, बह निकलेगा झरना।

कभी किसी दिन मिल जाओगे, ये विश्वास अमर है।
पा जाऊंगी त्राण, सफ़ल होगा तब जीना मरना।

जीवन का सुख यही, किसी का होकर के फिर जीना।
वरना सबको एक न इक दिन, मिट्टी में ही मिलना।
_ Kalpana tomar

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5 MAY AT 17:27

गरल को समझा सुधा, और चख लिया।
अब दिल नहीं, सीने में पत्थर रख लिया।

तूफ़ान आए, गए बिखरे, टूटकर जब।
खुद को समेटा, और बैठ सिसक लिया।

हाथ फैलाते रहे, जब बह रहे थे।
कौन अपना, गैर कौन, परख लिया।

जिनको कसक बरसों पुरानी कह न पाए।
दो घूंट पीके, ओट उसकी बक लिया।

जुर्म ख़ुदबखुद हो गया, कुछ नहीं करके।
जब देखना मुश्किल हुआ, मुंह ढक लिया।

मर गई इंसानियत, बाजार में जब।
थी वासना की भूख, जिस्म भक लिया।

जो ढूंढते कमियां, शिकायत पर शिकायत।
उसने क्यूं नहीं, अपने हृदय में झक लिया। _ Kalpana tomar

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4 MAY AT 21:26

तन्हा है भीड़ में, मन भी निराश है।
तारों की महफिल में चांद क्यूं उदास है।

तारों में छिपता कभी बादलों की ओट में।
बारिश में फिर भी क्यूं, भींगा लिवास है।

पी गई खामोशी, ज्वार उठा दिल में जो।
नशे में हुआ है मानो, चांद देवदास है।

छोड़ गई चांदनी, रात अंधियारी है।
मायूस दिल में क्यूं, अटका विश्वास है।

लगा है ग्रहण, चांद मुरझा है जबसे।
उसके हर गम का, मुझको अहसास है।

खिड़की में बैठी मैं, रात को निहारूं बाट।
आयेगा छत पै वो, दिल को ये आस है।

कैसे खत भेजूं, या इशारा करूं उसको।
खोया चांद खुद में, अब दूर है न पास है। _kalpana tomar

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31 MAR AT 18:10

आओ ईद मिलें।

जाति पांती का भेद हटाकर,
मानवता का धर्म निभाकर।
आत्मा ही तो परमात्मा है,
प्रेम से सबको गले लगाकर।
नेकी कर निकलें। आओ ईद.........

नफ़रत की दीवाल ढहा दो,
बनो सहारा हाथ बढ़ा दो।
बैर भाव धुल जाएं दिल के,
प्रेम की निर्मल धार बहा दो।
प्रीति के फूल खिलें। आओ ईद........

एक देश में हैं सब भाई,
हिंदू मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई।
भारत की इस तपोभूमि पर,
फिर ये रीति कहां से आई।
मजहब देख जलें। आओ ईद............

ये रमज़ान महीना पावन,
हो जाए सबका मन भावन।
बरसा दोगे नेह बदरिया,
मिल जाएगा रिमझिम सावन।
रंग से रंग ढलें। आओ ईद ...........
_ Kalpana tomar

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27 MAR AT 16:19

जो देखा पहले वही, आखिरी ख्वाब गया बन।
नजरों में बस गया, उसी को ढूंढ रहा मन।
उम्मीद छूटती नहीं, सूख कर सिमट गईं सब,
ना टूटा वो विश्वास, कभी तो आए सावन।


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23 MAR AT 23:16

इश्क का कहां कोई उसूल होता है।
यार जैसा भी हो , पर कुबूल होता है।

प्यार, तकरार तो इश्क के ही पहलू हैं।
एक ही डाल पै, कांटा और फूल होता है।

इश्क में पाना नहीं, सिर्फ खोना ही है।
स्वयं का हारजाना ही मंत्र मूल होता है।

इश्क करना सरल, पर निभाना कठिन है।
दोष किसी को भी देना, फिजूल होता है।

महबूब के जाने से इश्क नहीं मरता।
ये इबादत है, जो दिल से मकबूल होता है।

इश्क में वादे, कसमें, रीति, रिवाज नहीं होते।
विश्वास ही इस प्रेम का दुकूल होता है।

इश्क बिना तो जीवन का कोई अर्थ ही नहीं।
यदि प्रेम नहीं है तो फिर, सब धूल होता है।
_ Kalpana tomar

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19 MAR AT 18:02

तेरी महफ़िल में हम, मुस्कराने लगे,
जब से आके मिली, हमसे तेरी नज़र।
ख़्वाब सजने लगे, अरमा जगने लगे,
इश्क का तेरे होने लगा है असर।

जबसे देखा तुम्हें, जबसे जाना तुम्हें,
बस तुम्हीं से लगी, अब हमारी लगन।
दूर मंजिल बहुत, रास्ता है कठिन,
कैसे होगा, हमारा, तुम्हारा मिलन।
जब कदम तेरी राहों पै, पड़ने लगे,
मौत करने लगी, जिंदगी की क़दर।
तेरी महफ़िल.....

इस जमाने ने हमको दिया था ज़हर,
पर तुमने दिया आके अमृत पिला।
अब जमाने से कोई शिकायत नहीं,
जो चाहा था हमने, वो हमको मिला।
धारा बन कर के फिर आज बहने लगा,
इस नदी का गया था जो पानी ठहर।
तेरी महफ़िल..............
_ Kalpana tomar

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18 MAR AT 21:46

कुदरत के इंसाफ के आगे, बौने सभी अदालत।
यदि कुदरत ने किया फैसला, मिलती नहीं जमानत।

नहीं दिखाती हमदर्दी, ना करती माफ किसी को।
बच्चे, बूढ़े या जवान, मिलता है न्याय सभी को।

नहीं भूलती वो गुनाह, हम भूल गए जो करके।
यदि गुनाह तो सजा भी तय,फिर भाग सको ना बच के।

दया भाव से देती है सब, प्रेम करो प्रकृति से।
करती है सहयोग सदा तुम, जो भी करो सुकृति से।

धोखा, छल, रिश्वत, बेमानी, ये इंसानी फितरत।
काम नहीं सब आते ये जब, करे फैसला कुदरत।
_ Kalpana tomar

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17 MAR AT 21:56

जो बोया है सो काटोगे, सोच समझ कर बोना।
जैसी करनी, वैसे भरनी, पड़ सकता है रोना।

जो जीवन में घटित हो रहा, है सब कर्मों का फल।
दोष दूसरों को देते हम, हो जाते जब निष्फल।

गलती को स्वीकार न कर, फिर बहुत गलत कर जाते।
सबक नहीं यदि लिया भूल से, जीवन भर पछताते।

कर्म भक्ति है, कर्म में शक्ति, कर्म ही पूजा पाठ।
कर्मों की गति ही तय करती, पुण्य हुआ या पाप।

सत्कर्मों का बीज बोआ तो, उन्नत फल खाओगे।
वरना जैसे कर्म करोगे, वैसा फल पाओगे।
_ Kalpana tomar


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16 MAR AT 21:43

जब आया कोई मन के द्वार।
जुड़ जाते हैं दिल के तार।
आपस में ऐसे टकराए,
होने लगा हृदय झंकार।

झुक झुक आईं नीचे डलियां।
लगने लगीं डाल में अमियां।
आया है ऋतुराज चमन में,
खिलने लगीं हृदय की कलियां।

अब तो रहता इंतजार है।
मन का पंछी बेकरार है।
परदेशी घर आया जबसे,
बगिया में रहती बाहर है।

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