छीन ले गए समय हमसे, जिंदगी अब मांगती वो।
मुझे मेरा "वक्त" दे दो।
कुछ कदम ही चले हम तुम, राह में जब मोड़ आए।
संकल्प अपना तोड़कर तुम, बेसहारा छोड़ आए।
मौन अंतर द्वंद में सब, भावनाएं पिस रही हैं।
मस्तिष्क में बादल उमड़ते वेदनाएं रिस रहीं हैं।
घाव भर जाए हृदय के, बह गया जो रक्त दे दो।
मुझे मेरा वक्त दे दो।
नयन- घन में एक आंसू भी नहीं ठहरा खुशी का।
मूक रसना कह ना पाई, लग गया मुंह मुसीका।
हाय बचपन के वही दिन, हृदय में क्यों उभर आते।
नन्हीं परी कह कर हमारे, जब मुझे बाबा बिठाते।
रानी समझती.. बैठ गोदी में, वही फिर तख्त दे दो।
मुझे मेरा वक्त दे दो।
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मूक हुए अल्फ़ाज़, मौन कह जाता है।
आंखों का काजल, आंसू बन बह जाता है।
खामोशी की वो आह, नहीं सोने देती।
वो अतीत का जख्म, उभर जब आता है।
वो अनाथ आंसू, नयनों की कोरो से।
काजल से लिपटा, सिसक सिसक बतियाता है।
गुजरे दिन जब दे गए, पीर समुंदर सी।
सैलाब ग़मों का, पलकों से टकराता है।
रो..सूख गए घन नैना, "काजल" किसे पता।
"बस" मुरझाई पलकों पर, राज छिपाता है।
काजल तू बना गवाह, अश्रु ठुकराए जब।
वो जख्म उभर कर हुआ, आज फिर ताजा है।
सब दोष छिपे, तेरा भी रूप निखर आता।
जब सुरमा बन तू, नैनों में इठलाता है।
लोचन से तुम्हें चुरा, घायल कर छोड़ गए।
अब भी तू गहरे जख्मों को सहलाता है। _kalpana tomar
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तू चहके तो लगे सुहाना है।
वर्ना ये चमन वीराना है।
तेरे शब्द सुधा रस श्रवण करूं,
इस दिल की प्यास बुझाना है।
तेरी झील सी गहरी आंखों में,
डुबकी लूं फिर खो जाना है।
तू है तो ऋतुएं सावन सी,
रस प्रीत में डूब नहाना है।
तू महके चमन बहार हुई,
दिल कोकिल गाए तराना है।
आ झांक झरोखे में दिल के,
तेरे प्यार का भरा खजाना है।
तेरी शोख अदा पर बलिहारी,
जाऊं दिल का नजराना है।
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तेरी बेरुखी ने हैं ढाए सितम।
आजमालो हमें, टूट जाए वहम।
इम्तहानों से गुजरी हूं हर मोड़ पर।
तेरी खातिर भी जाऊं मैं हद से गुज़र।
तुमने पूछी नहीं क्या हमारी खता।
इस पर कुर्बान कितनी हुईं हैं व्यथा
ये चले ना चले प्यार का सिलसिला।
है यकीं फिर भी होगा, सही फैसला।
हर कसौटी पै अपनी, परखो कभी।
आप ही दूर हो जायेंगे भ्रम सभी।
दरमिया प्यार के आजमाइश नहीं।
क्या करूं तेरे बिन कोई ख्वाइश नहीं।
तेरी हर सजा पर, निभाई बफ़ा।
आजमालो हमें चाहे कितनी दफा।-
तेरे करण ही तो खुशियां और तुझसे ही ग़म।
तू खुश है तो दिल में मेरे, बजती है सरगम।
देख तुझे खुश जाती हूँ, जाती हूं सब भूल,
बहार बन के आए हो तुम , ओ मेरे हमदम।
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जाने वाले लौट आ, कहीं भूल ना जाना।
बिना तुम्हारे मेरा कोई, और नहीं ठिकाना।
मिल जाऊंगी खड़ी वहीं पर, जहां गए तुम छोड़।
ओ बेदर्दी, हमसे ना यूं जाना तुम मुख मोड़।
तेरी बाट निहारूं आजा, सूना है घर आंगन।
लागे ना तेरे बिन जीयरा, आजा मेरे साजन।
रिमझिम बरसे बैरी सावन, दिल में आग लगाए।
बोले मोर , पपीहा पल पल, तेरी याद सताए।
घन गरजे चपला चमके, तो मोहि नींद न आए।
रेन अंधेरी डर लागे मोहि, मन मेरो घबराए।
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गलती तो हो गई, पर जो कर पछताए।
सुबह के भूले, वही शाम घर आए।
स्वाभाविक भटकाव, कठिन जीवन पथ।
सहज नहीं कुछ मिला, हुए फिर आहत।
दर दर भटका करते, खाते हैं ठोकर।
फिर सारी उम्र गुजर जाती रो रोकर।
ग़लती को जब तक नहीं कबूला ग़लती।
तब तक आगे की राह नहीं खुल सकती।
कुछ लकीर के बन फ़कीर रह जाते।
फिर दोष दूसरों को दे दे पछताते।
भूली राहें जो सिखा पढ़ा जाती हैं।
वही सबक बन सदा काम आतीं हैं।-
कैसे बता, मनाऊं तुझको, सुन ओ रूठे दिल।
फूट पड़ा है दिल का दरिया, नहीं मिला साहिल।
मत रूठे बच्चों सा दिल, तू खुद ही बना खिलौना।
नज़र लगी आ तुझे लगा दूं, काला एक ढिटौना।
सांसों में जबतक सरगम है, तेरे साथ रहूंगी।
जिंदा हूं, तेरे ही दम पर, तेरे साथ मरूंगी।
टूट गया है जबसे तू, रूठा, ग़म में रहता है।
वही दर्द इन आंखों में अब, आंसू बन बहता है।
रुठो मत ना टूटो तुम यूं, मैं हूं साथ तुम्हारे।
ग़म के हों या खुशियों के दिन, हमने साथ गुजारे।
मुझसे गर रूठे तो फिर तुम, बता कहां जाओगे।
कैसे तुझे सम्हाला, ये भी तभी समझ पाओगे।
भावों में मत बहना ए दिल, कह कह के मैं हारी।
बहुत सह लिया अब तक तुमने, अब दिमाग की बारी। Kalpana tomar-
आया सावन याद आया फिर, बाबुल तेरा गांव।
आती नहीं हिचकियां, अब ना कौआ बोले कांव।
लेने भैया आए ना अबकी।
जावें पीहर बहुएं सबकी।
आए तुम, सुध आई तबकी, अब काहे बिलगांव।
आया सावन ............।
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दिल में जिन्हें बसा रक्खा है, फिर कैसा खोने का डर।
जिनको भी चाहा है दिल से, रहते वो दिल के भीतर।
हमको है विश्वास हमारा, प्यार किया जिनको दिल से।
उनको छोड़ नहीं सकते, हो जाए दुनियां इधर उधर।
आने की कह चले गए वो, छोड़ गए फिर ना आए।
टूटी नहीं आश हिरदय की, इंतजार है जीवन भर।
जीने में मरने का डर है, और पाने में खोने का।
चढ़े हिमालय गिर ना जाएं, भय से कांप रहे थर थर।
आया है सो जाएगा, ये सत्य सनातन शाश्वत है।
जब जिसकी आ जाए बारी, जीवन जाए वहीं ठहर।
ना कोई भय, अब न ही हर्ष है, ना खोने पाने का ग़म।
जो होना था, वही हुआ है, फिर क्यूं जीना घुट घुट कर।
डर के जीना भी क्या जीना, जीना है बेखौफ जियो।
डर के जिंदा लाश रहे तो, अच्छा फिर मरना बेहतर। Kalpana tomar
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