नेह का दीपक जलाकर, मैं चिरंतर प्रतीक्षारत रहूंगी,
बिन तुम्हारे यह जीवन अधूरा,बस यही तुमसे कहूंगी।
कट गए जाने बरस कितने,मायूसी और तन्हाइयों में,
छोड़कर एक पल के लिए भी, मैं तुम्हें जाने न दूंगी।
अमावस की हो रात काली या दिन लिए हों प्रभाती,
मन की वीणा झंकृत हो, नाम तुम्हारा ही बुलाती।
रातरानी की महक हो या फिर हो सुगंध मोगरे की,
सांसों की रवानी में बसती है सिर्फ खुशबू तुम्हारी।
कामना है महज इतनी, प्राण जब इस तन से निकले,
अपनी बांहों में तुम लेकर, मांग फिर से मेरी भरना।
हर इक जनम में साथी मेरे,साथ तुम यूं ही निभाना,
जब भी आऊं मैं धरा पर,संग जीवन है बिताना।
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