Kalpana Pandey  
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Joined 16 September 2020


Joined 16 September 2020
14 APR 2022 AT 0:03

वक़्त से थोड़ा वक़्त और माँग लाते हैं,
चलो यादों के संदूक में थोड़ा झाँक आते हैं।

गुड्डे-गुड़िये का आज फिर से ब्याह रचाते हैं,
पुराने माँझे में एक नयी पतंग उड़ाते हैं।

बरसात जो आए कागज़ की नाव बनाते हैं,
पत्थर मार पड़ोसी के फिर से 'आम' गिराते हैं।

सारी अक़्ल...
सारी समझ...
कहीं ताले में बंद कर आते हैं,
बचपन के वो किस्से आज फिर दोहराते हैं।

वक़्त से थोड़ा वक़्त और माँग लाते हैं,
चलो यादों के संदूक में थोड़ा झाँक आते हैं।

- कल्पना पाण्डेय







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3 APR 2022 AT 11:28

कुछ 'शब्द' पिरोये थे हमने,
फिर 'भाव' उसमें जोड़े थे।

लोग कहते हैं कि हम 'शायर' बन गयें,
कल तक हम भी 'निगोड़े' थे।।

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20 JAN 2022 AT 22:23

कभी 'तबीयत' से मिलो तो बताएँ तुम्हें
कि 'तबीयत' इतनी नासाज़ क्यों है.....

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3 OCT 2021 AT 0:47

न अल्फ़ाज़ कम हुए....
न शब्द रूठे हैं....
बस मसरूफियत में कई,
मशग़ले छूटें हैं।।

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8 AUG 2021 AT 20:21

आँखो में है ख्वाब अभी भी
दिल में अभी भी क़रार है।

तुम समझते हो जीत गए बाज़ी,
पर इसमें तुम्हारी ही हार है।।

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1 AUG 2021 AT 14:28

Every relationship becomes beautiful if it has essence of friendship in it.

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31 JUL 2021 AT 9:53

खासियत यही रही
जिंदगी की जिंदगी भर,

चलती भी रही...
हमें चलाती भी रही...

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31 JUL 2021 AT 8:49

हारना भी सही है....
बात अगर शुकून पे आ जाए।।

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20 JUL 2021 AT 21:01

दिल 'सोने' का होके भी खाली सा है,
मेरा हाल तेरे कानों के बाली सा है।।

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17 JUL 2021 AT 19:20

एक वो ही नाराज नहीं हमसे,
हम भी खुद से खफा हैं।
बदला जो वक़्त,
बदल गए हम भी,
पहले जैसे हम भी कहाँ हैं।।

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