मेरे कमरे में आओ तो देख कर आना,
अपने कदम ज़रा संभाल कर बढ़ाना,
चारों तरफ मेरे ख़्वाब बिखरे पड़े है,
उन्हें ज़रा सा भी नुकसान न पहुँचना।
बिस्तर पर डायरी और कलम रखे है,
उस कलम में कुछ अल्फ़ाज़ फसे है,
अभी उन्हें डायरी में लिखना है मुझे,
वरना ये यहाँ बेवजह ही थोड़ी पड़े है।
एक नया कोरा पन्ना भी खुला हुआ है,
एक बेरंग सा चित्र मन मे रुका हुआ है,
अभी उठ के उसे पूरा भी करूँगा मैं,
ये भूल न जाऊं तभी ऐसे रखा हुआ है।
कुछ किताबें भी रखीं हैं मेरी वहीं पर,
पर इन्हें भी छोड़ दूंगा ऐसे ही यहीं पर,
बस पढ़ कर उन्हें सुकून खोज रहा था,
सोचा मिल जाए शायद उन्ही में कहीं पर।
यही सब तो अक्सर मेरा साथ दिया करते है,
कोई नही होता तब हाल चाल लिया करते है,
कैसे रख दूँ इन्हें किसी अलमारी में बंद कर के,
ये सब मेरे लिए दोस्त का काम किया करते है।
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