ये नाराजगी पिघल रही है, जैसे बर्फ़ पिघलती है
बस उसी तरह से.. तुम्हारे गर्म होंठों की छुअन सा
जैसे छुआ हो मेरे मन को-
प्यार किया है तुमसे
और तुम्हें आजाद भी किया है
क्या अजब इश्क है ये
कैद में होकर तुम्हारे
हमने तुम्हें रिहा किया है-
उसका क्या ही गम करें
जो मिला हुआ है नसीब में
क्यों न उसे अपना इस जनम करें-
उसका क्या ही गम करें
जो मिला हुआ है नसीब में
क्यों न उसे अपना इस जनम करें-
हम संभलने की कोशिश में थे कि तुम फ़िर से मेरी जिंदगी में अफरा तफ़री मचाने आ गए
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आजकल सुकून नहीं मिलता तुमसे बातें करके
तुम बदल गए हो या फ़िर बदल गए हैं एहसास हमारे दरमियां?-
कभी कभी कुछ सच्चाई दिल की गहराइयों में ही कैद रहे तो अच्छा है...
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वो भरते क्यूँ नहीं
जो सपने दिखायें तूने
वो मरते क्यूँ नहीं..
बिखरी हुई हूँ उस राह पर
जहाँ छोड़ गए थे तुम
मुझे समेटने को इधर से
गुज़रते क्यूँ नहीं..?
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तुम कुछ बदल से गए हो
शायद किसी के बांहों में संभल से गए हो
तुम ख़ुश हो तो ख़ुश मैं भी
जरूरत हो मेरी तो याद कर लेना कभी
अब क्या ग़लत अब क्या सही
मुझे पता है अब तुम मेरे नहीं.. !
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