तरासिय खुद को कुछ इस तरह।
कि हर को आपके लिए तरस जाए।।-
ना जाने कहा से शिख लिया
लोगो कि परवाह करना।
इन किन्हीं लोगों कि वजह़ से
खुदकी अहमियत गवाय
बैठै है।
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तेरे चहरे कि मसूमियतम, वो पाक दिल,
बस बिखेर देती है घर मे रैनक''
दादा जी की जान,घर मे दादा जी
बन कर हर एक पर हुकुम चलने का ,
तेरा यह अन्दाज अच्छा लगता है!!
आजी से बात बात पर लड़ना
और दीदी की भी दीदी बनने का
आन्दाज अच्छा लगता है!!
चाचा का तुझे छुटका बुलना,
उनके मारने पर तेरा भी पलट के
मुक्का का आना '' लडाकु''
अन्दाज अच्छा लगता है!!
पापा के घर पर आते ही चीज आई
कहा कर दौड के बाहर जाना,
आन्दाज अच्छा लगता है!!
मम्मी को (सिमरान)कह कर बुलाना
अन्दाज अच्छा लगता हे।।
भाई से छोटी हो कर भी उससे
अपने नाखरे उठ बना
अन्दाज अच्छा लगता है।।
काजल जीजी के काम बिगाड़के
धोखे से हो गया कहा ना का
अन्दाज अच्छा लगता है!!-
जिन लोगो के भाव लाँकडाउन मे
कुछ ज्यादा ही बढ रहे है।
उनसे तो हम बाद मे मिलेंगे।।।-
कुछ तो जादू है आपकी निगाहों में
जिस दिन से नजर मिली है
आपके गुलाम हो गए हैं-