Kajal Tiwari   (Kajal (बेख़बर))
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Joined 10 July 2021


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17 FEB 2022 AT 0:24

वो दौर कोई और था ये दौर कोई और है
दूसरों के हाथों में ही हर किसी की डोर है

ना कोई था ना कोई होगा तेरा इक तेरे सिवा
अजनबी हैं सभी महज़ अपनेपन का शोर है

डूबा जा रहा जीवन सभी का चिंता के तम में
पर है मुख लालिमा छाई ये दिखावे का भोर है

जो बहल जाता था तेरी सच्ची–झूठी बातों से
वो शख्स कोई और था ये शख्स कोई और है— % &

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7 FEB 2022 AT 16:10

जैसे भुलाए से भूलता नहीं महबूब का दिया वो आख़िरी गुलाब
वैसे ही भूल नहीं पाओगे तुम भी हमसे हुई वो पहली मुलाक़ात

हम चाहते ही हैं कि याद आती रहे तुम्हें मेरी की सारी नादानियाँ
और याद आती रहे मेरी मोहब्बत संग अपनी वाहियात ख़ामियाँ

जब भी याद करो मुहब्बत के लम्हें हर बार टूट कर बिखर जाओ
दुआ है कि ताउम्र कोसो ख़ुद को और ऐसे ही इक दिन मर जाओ— % &

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5 FEB 2022 AT 23:15

तेरे ख़्वाबों की गलियों से होकर हर रात वो गुज़रने लगी है
तेरे यादों के पन्नों पर स्याही बन पल पल वो बिख़रने लगी है
वो एक अल्हड़ सी लड़की जो साजो श्रृंगार से बेख़बर होती थी
तू मिला तो जाने क्यूँ अब आइने के सामने घंटो संवरने लगी है— % &

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4 FEB 2022 AT 22:08

मांग हमारी अब जिसके भी नाम से सिंदूरी होगी
वादा है उस रिश्ते में कभी ना कोई मजबूरी होगी

बना अर्धांगिनी अपनी जब वो हमको अपनाएंगे
तो हम भी सप्रेम अपना सर्वस्व उन्हीं पे लुटाएंगे— % &

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3 FEB 2022 AT 22:00

लबों पर ठहरी हिचकिचाहट है थोड़ी सी
नज़रों में इज़हार–ए–इश्क़ छुपाए बैठे हैं

बातें हैं करते इधर–उधर की सारा दिन वो
पर उन बातों में ज़िक्र हमारा समाए बैठे हैं

कोई समझाए कि जानलेवा होती है दिल्लगी
क्यों बेदर्दी पर वो जान दांव पर लगाए बैठे हैं

जो परे है इश्क़ मोहब्बत के सारे एहसासों से
उस निर्मोही पर क्यों प्रेम जाल बिछाए बैठे हैं— % &

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2 FEB 2022 AT 15:38

100 कपड़े देखने के बाद जब मैं दुकानदार से कहूं कि कुछ ख़ास पसंद नहीं आ रहा ठीक ठीक दाम लगाओ तो 1–2 ले भी लूं

तब दुकानदार :–👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻😂— % &

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24 JAN 2022 AT 16:00

// बेटियाँ //

कई जन्मों के पुण्यों का वरदान हैं ये बेटियाँ
बेटा है कुल का दीप तो अभिमान हैं ये बेटियाँ

इच्छाएँ पूर्ण करने को अपनी भाग रहे हैं सभी
मगर हर रूप में केवल बलिदान हैं ये बेटियाँ

हर मायूसी को हर ले महज़ इक मुस्कान से वो
वीरान से घर आँगन की होती जान है ये बेटियाँ

यूँ तो बेटा–बेटी दोनों ही आँखों के तारे हैं लेकिन
वारिस है उनका लाडला स्वाभिमान हैं ये बेटियाँ

रिश्ते निभाए निश्छलता से प्रेम में बांधे हर बंधन
पर ना समझे कोई कितनी मूल्यवान हैं ये बेटियाँ

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23 JAN 2022 AT 16:20

इतिहास गवाह है डूबती हुई कश्ती को कभी भी किनारा नहीं मिला
जिसका दिल ही रहा काला उसकी सोच में कभी उजियारा नहीं मिला

भटकते रहे दर–बदर ताउम्र कि कोई तो अपना समझ अपना ले हमें
इसी उम्मीद में हम तो होते रहे सबके पर कोई हमें हमारा नहीं मिला

सुना है बाद मरने के मेरे दस्तान–ए–वफ़ा सुनाई जाती है सबको मेरी
मैयत में भी आए हज़ारों और जीते जी एक कांधे का सहारा नहीं मिला

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21 JAN 2022 AT 11:30

बोझिल सी इस जिंदगी को अब
हम मिटा दें क्या किसी की याद में

नज़रअंदाज़ कर सबके मशवरे को
डूबे रहें क्या उनकी ही पुरानी बात में

सफ़र लंबा है अभी नज़रिया बदलने
वाले कुछ भले लोग भी मिलेंगे इसमें

तुम ही कहो, कदम बढ़ाएं आगे या
खोए रहें उसी आख़िरी मुलाकात में

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17 JAN 2022 AT 12:01

अब मुझे सताती ही नहीं
सारा वक्त कट जाता है
अब ख़ुद को तराशने में
ये रातें तन्हाई मुझे महसूस
अब कभी कराती ही नहीं

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