खुदा के फरिस्ते हो तुम जिसे पूरी कायनात का ताज़ समझते है...। न कोई दिखावा, न कोई बनावट और न ही किसी को दर्द देने की चाहत...। पूरी शरतनत को जीतने का हुनर रखते हो...। बिना नमी के सेह जाते हो गम तुम, बिना कहे समझ जाते हो हर दर्द तुम...। माँ के साये में रहने की खुदा से इबादते करते हो...। तुम अपनी माँ से बेइंतहा मोहब्बत करते हो...।
पल भर में जुड़ते है कुछ रिश्ते जो ज़िंदगी भर के लिए खाश बन जाते हैं...। दूर होकर भी हमेसा अपने पन का एहसास कराते हैं...। क्युकी वो खाश रिश्ते लफ़्ज़ों से नही दिल से बनाये जाते हैं...। संजो के रखना उन रिश्तो को क्युकी खुदा बहुत कम ही अपनी मेहर बरसाते है....।