कि पाकर दुलार सारी दुनिया का मैं,
बस अपनों का ही प्यार न पा सकी
और बनाकर अपना सारी दुनिया को मैं,
बस अपनों को ही अपना न बना सकी...-
तुझसे मोहब्बत तो मैं कुछ यूँ करती हूँ,
कि तुझसे मोहब्बत है कहने से डरती हूँ
और करके तारीफें तेरी सारी दुनिया के सामने,
मैं तुझसे तुझको न जाने कितना बुरा कहती हूँ...-
देखा है मैंने मेरा हक, मेरे अपनो को ही मिलते हुए।
यूँ ही नहीं अब मैं, हर बात पर सिर्फ मुस्कुराती हूँ...-
उससे नाराज होकर भी मैंने सिर्फ उसका ही इंतजार किया है।
मैं कैसे बयां करुँ कि मैंने उस शख्स से कितना प्यार किया है...-
कि शिकायतें तो बहुत है दोनों में,
पर उन्हें करने को अब दोनों ही नहीं।
जैसे कि एक रिश्ता तो है दोनों में,
पर उस रिश्ते में अब दोनों ही नहीं।-
शोर है मेरे आस पास आज बहुत ज्यादा,
पर इस दिल में फिर भी इक घबराहट सी है
कि ऐसे ही शोर और हंसी के साथ एक दिन,
मुझे तुझसे हमेशा के लिए अलग कर दिया जाएगा...-
जो मैं नहीं हूँ आज मुझे वो बनाया गया है,
मुझे मेरे अपनो के द्वारा ही आजमाया गया है
और कौन कहता है कि हंसते चेहरे को गम नहीं होता,
मुझे तो देकर चोट अंदर से बाहर से हंसाया गया है...-
कि ना जाने कैसी मेरी किस्मत है,
इसमें मुझे तुझसे मिलना नसीब नहीं
और कहने को इतना बड़ा शहर है मेरा,
पर मिलने को तुझसे इसमें एक जगह नहीं..-
ये पहला और आखिरी क्या होता है,
प्यार तो सिर्फ एक ही बार होता है
और एक बार के बाद जो भी होता है,
वो प्यार नहीं बल्कि अपने साथ किया
सिर्फ और सिर्फ एक समझौता होता है...-
खामोश रहकर काफी देर तक,
मेरे पास बैठने के बाद अचानक
उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा-
"कि चलो अब अपने घर चलते हैं"-