Kaisar Raza   (क़ैसर रज़ा)
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Assistant Professor, Central University of Rajasthan
Joined 9 April 2020


Assistant Professor, Central University of Rajasthan
Joined 9 April 2020
2 OCT AT 13:40

सभी को विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं💐💐।

"रामराज्य"

फिर मर्यादा जागेगी, न्याय भी पैर पसारेगा,
दुराचारी का आसुरी रूप, त्राहि माम पुकारेगा,

प्रत्यंचा पर दुष्भाव भेदी, वाण अब हुंकारेगा,
गरिमा रखी जायेगी और समभाव रूप निखारेगा,

शबरी को मान मिलेगा अब, खेवट पूछा जाएगा,
तुम आओगे, तो निर्बल पर कोई हाथ नहीं उठाएगा,

मंथरा अपनी बात रखेगी, कैकयी का मान भी न जाएगा,
चारों और दीप जलेंगे, हृदय हर जन का हर्षाएगा,

त्रेता को तुम तार चुके हो, कलयुग कब तारा जाएगा?
हे राम! हम तुम्हारे अभिलाषी हैं, रामराज्य कब आएगा?

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25 SEP AT 11:23

"फार्मासिस्ट"

तुम इक कड़वे काढ़े को, लजीज़ सिरप बनाते हो,
जड़ी के पाउडर को तुम, टेबलेट का रूप दिलाते हो,
डॉक्टर को तुम उसके, हथियारों से लैस कराते हो,
नाम किसी का होता है, तुम पर्दे पीछे मुस्काते हो।

काम तुम्हारे ऊँचें हैं, पर वो सम्मान नहीं मिल पाता है,
सर दर्द से कैंसर तक, सब दवाएं फार्मासिस्ट बनाता है,
इंसान की बेहतर सेहत में, तुम अपना हाथ बंटाते हो,
नित मेहनत करते रहते हो, गुमनामी में नाम कमाते हो।

Happy World Pharmacists Day

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12 SEP AT 16:32

"सफ़र"

तुम समंदर के किनारे पर,
धूप सेकते हुए, रेत से खेलते हुए,
उलाहने दे रहे हो, मेरी बेरंग जिंदगी के,
मैं जानता हूं, तुम कर चुके हो, अपना सफ़र पूरा,
आज तुम्हारे पास वक्त है और थोड़ा दिन भी है अधूरा,
मगर, मैं तो थोड़ा धीमा हूं और हूं अभी मझधार में,
मुझे सिर्फ़ किनारे तलक ही नहीं आना है,
अपनी कश्ति भी बचानी है,
इन लहरों से भी लड़ना है,
और ज़िम्मेदारियां भी निभानी हैं।

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5 SEP AT 18:58

"मैंने याद किया"

सोचा था कि बहुत मालूम है,
मगर कुछ अहसासात बाक़ी हैं,
थोड़ा दूर होकर हुआ महसूस कि,
हम सदियों से रहे टीचर्स को भी,
अपने स्टूडेंट्स की याद आती है।

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5 SEP AT 11:20

"मीलाद"

मुझको नहीं पता
कि वो तारीख़ कौन थी,
पर दिन वो पीर का था,
और वो बात और थी,

मीलाद मने या ना मने,
इस पर हो सकती है बहस,
पर वो क़िरदार बेहतरीह हैं,
और वो सीरत और थी,

सल्लु अलैह के विर्द से,
मुझे हरगिज़ नहीं गुरेज़,
वो सादिक़ हैं, रऊफ़ हैं,
उनकी तो ज़ात और थी।।

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5 SEP AT 3:58

"चाहत"

ऐसा नहीं है कि बस मैं एक,
रस्म निभाना चाहता हूं।

यह जान लो तुमको मैं,
ख़ुद से बेहतर बनाना चाहता हूं।

मैं चाहता हूं कि जहां से मेरी शुरुआत है,
तुम वहां से चलो।

यह आरज़ू है, जहां मैं थक कर बैठ जाऊं,
वहां से तुम आगे बढ़ो।

मैं तुम्हारे अक्स में अपना हर,
इल्म-ओ-हुनर उतारना चाहता हूं।

यह जान लो तुमको मैं,
ख़ुद से बेहतर बनाना चाहता हूं।।

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19 AUG AT 3:04

"परदेस"

यहां देस अलग, यहां का संविधान अलग,
यहां का खान पान अलग, और परिधान अलग,

यहां के लोग अलग, यहां के भोग अलग,
रहन सहन अलहदा और दिलों के रोग अलग,

अलग हैं यहां के जीव, पेड़, जंगल और शैल,
अलहदा है भूत, पिशाच, डाकनी और चुड़ैल,

एक है हवा, चांद, सूरज, तारें और फलक,
इनकी भी है चाल अलग, और परवाज़ अलग।।

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16 AUG AT 14:59

"कान्हा"

कौन तजेगा भोग विलास, धर्म उत्थान कराने को,
कौन उठाएगा गोवर्धन, इंद्र को सीख सिखाने को,

कौन तोड़ेगा, अभिमान ब्रह्मा का, भ्रम को दूर भगाने को,
कौन जाएगा क्रीड़ा करने, कलिहर नाग हराने को,

कौन इतना धैर्य धरेगा, शिशुपाल की माँ का वचन निभाने को,
भरी सभा में, कौन करेगा फिर साहस, द्रौपदी की लाज बचाने को,

कौन अपना निज त्याग करेगा, धर्म की विजय कराने को,
हे श्री कृष्ण! आपका जीवन एक सीख है, हम सभी के अपनाने को।

Happy Janmashtami to all

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15 AUG AT 1:45

"ख़ुशी के गीत"

चाहे कोई हमें कितना बांटे, उसको आज नज़र अंदाज़ कर जाऊंगा,
आज यौम-ए-आज़ादी है, मैं तो गीत ख़ुशी के गाऊंगा।

मेरे प्यारे देश की भूमि, नदियां, पर्वत और सागर, कितने प्यारे हैं,
भांति भांति के हैं लोग यहां पर, सब कई मत मतान्तर वाले हैं,
मैं आज़ादी के मतवाले, उन भूमिपुत्रों की गाथा ख़ूब सुनाऊंगा,
आज यौम-ए-आज़ादी है, मैं तो गीत ख़ुशी के गाऊंगा।

खेत लहलहाए मेरे देश के, इसका उपवन भी आबाद रहे,
नदियों का नीर भी स्वच्छ रहे, संसाधन सब पर्याप्त रहे,
मैं विज्ञान में भी, इसके अतुल योगदान का गौरव गान सुनाऊंगा,
आज यौम-ए-आज़ादी है, मैं तो गीत ख़ुशी के गाऊंगा।

हर शोषित को यहां न्याय मिले, हर निर्धन को भी आय मिले,
निर्बल को समुदाय मिले, घृणा को भी प्रेम पर्याय मिले,
समर्थ बने यह देश मेरा, आज किंकर्तव्यविमूढ़ तुम्हें कर जाऊंगा,
आज यौम-ए-आज़ादी है, मैं तो गीत ख़ुशी के गाऊंगा।

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10 AUG AT 20:50

"ख़ामोशियाँ"

तू मुझे देख कर, यूं नज़र न चुरा,
न यह तेरा क़ुसूर, न यह मेरी ख़ता।

देखने की तलब तुझको, सदियों से थीं,
मैं रहा मुंतज़िर, कई दशकों तलक,
जिसकी है तुझे ख़बर, जो है तुझको पता।

आसमां है मुशाहिद, और है ज़मीं भी गवाह,
जिसकी शम्स-ओ-क़मर, दे रहें है सदा,
अनकही ख़ामोशियां, जो मेरे दिल ने सुना।

तू मुझे देख कर, यूं नज़र न चुरा,
न यह तेरी क़ुसूर, न यह मेरी ख़ता।।

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