Kaisar Raza   (क़ैसर रज़ा)
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Assistant Professor, Central University of Rajasthan
Joined 9 April 2020


Assistant Professor, Central University of Rajasthan
Joined 9 April 2020
11 APR AT 10:59

"मेरी ईद"

मेरे हाथों की मेहंदी बोले,
परान्दी मेरी खुशियों में डोले,

मेरी चूड़ियाँ करती हैं सुगबुगाहट,
मेरी पाज़ेब देती रहती, मेरी आहट,

मिल गई मुझे, मेरे अपनों की दीद,
संवरा रहे मेरा अंगना, सजी रहे मेरी ईद।

ईद मुबारक 🌷🌷🌹🌺

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11 APR AT 1:35

"ख़ुशी"

ईद के चाँद ने आकर यह क्या कहा,
कि सारी बस्ती में ख़ुशियों की तस्वीर है,

बेटियों ने सजा लीं है, हाथों पर हिना,
और उनके चेहरों पर इक अजब नूर है,

लौट आएं हैं परदेसी, घौंसलों की तरफ़,
संग ख़ुशियाँ मनाने का यह भी दस्तूर है,

नए नए कपड़ों में सज गए नौनिहाल,
जल्दी निकले हैं, मस्जिद थोड़ी दूर है,

एक सफ़ में खड़े हैं सेठ-नौकर सभी,
रब्ब के आगे, तेरी पहचान, कुछ और है,

बांटों खुशियां, हमें नफ़रतों से है क्या,
तेरे दाता को मोहब्बत, मक़बूल है,

ईद के चाँद ने आकर यह क्या कहा,
कि सारी बस्ती में ख़ुशियों की तस्वीर है।।

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8 APR AT 0:24

"अभी नहीं"

कोई कहे, वो हैं पुरसुकून ठंडा साया,
कोई कहे ख़ुद-ब-ख़ुद, रब्ब उतर आया,

किसी ने उसके पैरों के नीचे जन्नत देखी,
किसी ने उसको बहिश्त का दरवाज़ा पाया,

चहकते हैं घर-आँगन, महज़ उनके होने से,
उनके बग़ैर, महलों में भी वीराना छाया,

ख़ुदाया! उम्र दराज़ कर हमारे वालिदैन की,
जिन्होंने हमारे वास्ते, हर रंज-ओ-ग़म उठाया,

मालिक! सुकून दे उनको, जो खो चुके हैं इन्हें,
कर करम, रहे सलामत, हम पर इनका साया...

कर करम, रहे सलामत, हम पर इनका साया...

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30 MAR AT 11:42

"राजस्थान"

जहाँ वीरों की गाथाएं हैं,
मीरा बाई की रचनाएं हैं..
है महाराणा का अदम्य शौर्य जहाँ
जिसने अपने शहरों में रंग भरा..
जहाँ चेहरों पर मुस्कान है,
खेत, खलिहान और जहाँ पर, वृहत रेगिस्तान है..
जहाँ नाथद्वारा का धाम है,
जहाँ बालाजी का दिन, खाटू वाले की शाम है..
जहाँ ख़्वाजा और सांबर का दरबार है,
और ख़ूबसूरत राजहंसों की भरमार है..
जहाँ का बच्चा बच्चा है सूरमा,
लुभाता है जहां सभी को दाल, बाटी और चूरमा..
जहाँ कुछ को तो भानगढ़ डराता है,
सरिस्का, ताल छापर, भरतपुर और रणथम्बोर लुभाता है..
जहाँ पर मरुभूमि में मूमल गाया जाता है,
जहां का कालबेलिया और घूमर ख़ूब सुहाता है..
जिसका क्षेत्रफल अथाह है,
जिसके शौर्य का इतिहास ख़ुद गवाह है..
जहाँ के लोक गीत, नृत्य और परिधान बहुत ही न्यारे हैं,
जहाँ के नर और नारी, मृदुभाषी, भोले और प्यारे हैं..
जहाँ का मार्बल, विदेशों में बेचा जाता है,
वो भारत की शान, यह राजस्थान, मुझे सुहाता है।

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28 MAR AT 0:20

"गुमाँ"

मुझे एहसास है कि ख़ामियों से पाक नहीं हूँ मैं,
पर तू यह गुमाँ न कर कि मुझे तेरा पता नहीं,
मानता हूँ कि बेतरतीबियों से मेरा रिश्ता शदीद है,
मुझ बाख़बर को यूं न जता कि जैसे तेरी ख़ता नहीं।

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10 MAR AT 18:18

"AC कोच"

मुझे नहीं दिखती वो भीड़ भाड़,
अब मैं AC कोच में सफ़र करता हूँ,
नहीं सुनती डब्बों में चढ़ने की चीख पुकार,
बिलखते बच्चे, गंदे कोच, बेमतलब की दंभ हुंकार,
अब मैं AC कोच में सफ़र करता हूँ...

सीट के लिए, लाहनतें दुत्कार,
कभी घूसे और कभी मारम मार,
घर जाने को आतुर जग संसार,
मुसाफिरों की लंबी कतार,
शुक्र है, मेरे लिए बदल गया संसार,
अब मैं AC कोच में सफ़र करता हूँ।

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9 MAR AT 7:29

"उत्थान"

जिसको दी है सृजन की शक्ति,
प्रेम-त्याग में जिसकी आसक्ति,
सु-कर्म करने का उत्साह है उसमें,
आसमान लांघने की चाह है उसमें,
जिसने कार्यस्थल में शौर्य कमाया,
गृह स्वामिनी का भी धर्म निभाया,
बहुत दूरी, वह तय कर के आई,
पैरों में ज़ख़्म, फिर भी मुस्काई,
हम दवा भले ही न उसे लगाएं,
पर उसकी राह में न काटें बिछवायें,
जब होगा, सकल नारी उत्थान,
ख़ुद ही बनेगा, मेरा भारत महान।

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22 FEB AT 17:20

"मोबाइल की दुनिया"

शुक्र है कि मोबाइल है,
सभी ने आंखें, उसमें ही गड़ाईं हैं,
दस इंसान बैठे हैं एक कमरे में,
फिर भी ग़ज़ब की ख़ामोशी छाई है।

शुक्र है कि मोबाइल है...

दो अल्फ़ाज़ बोलने पर,
जाने क्या आफ़त आई है,
नज़रें चुराने की हमने,
यह नई तरतीब अपनाई है।

शुक्र है कि मोबाइल है...

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14 FEB AT 13:03

"परोक्ष"

मैं प्रेम लिखूं, या त्याग लिखूं,
सौभाग्य लिखूं, कोई शब्द न पाए।
जिससे है उल्लासित जीवन,
कैसे कोई उसे शब्दों में लाए।।

मेरे व्यवहार को ही तुम प्रेम समझ लो,
जिसको हम शब्दों में बोल न पाएं।
भाव को शब्दों का रूप दिला कर,
क्योंकर हम इनका भाव गिराएं।।

प्रेम प्रधान सब काज है मेरे,
यह सम्भव नहीं कि तुम भांप न पाए।
क्यों प्रीत सरल है, अभिव्यक्ति कठिन है,
इसका रहस्य हम कभी जान न पाए।।

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26 JAN AT 0:46

"शुकराना"

मेरे प्यारे वतन, तुझसे ही मिला, जो कुछ मिला मुझको,

होगा तो तक़दीर से, पर तुझसे नहीं, कोई गिला मुझको।।

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