"जंग नहीं चाहिए"
मीडिया के भाई-बंधु तो,
TRP की खाते हैं,
आज अफ़वाह उड़ाते हैं,
कल माफ़ी की रील चलाते हैं।
पर मेरे हमवतनों तुम क्यों,
झूठी बात फैलाते हो,
क्यों लड़ाई-जंग की बातों से,
यूं आनंदित हो जाते हो।
सरहद के गांवों में,
ख़ून की और हमें,
गंध नहीं चाहिए,
दुश्मन को हमने,
सबक़ सीखाना है मगर,
हमें यह जंग नहीं चाहिए।।
हमें और जंग नहीं चाहिए।-
"हम साथ हैं"
यह वक़्त है साथ आ जाने का,
अपने सभी मतभेद भुलाने का..
तू ऐसा है, मैं वैसा हूं,
यह राग द्वेष मिटाने का,
मेरे हरे का भी मान रहे,
तेरे भगवे की भी शान रहे,
दोनों को साथ में लाने का,
मिल तिरंगा ऊंचा फहराने का,
यह वक़्त है साथ आने का
अपने सभी मतभेद भुलाने का..
आ कंधे से कंधा मिला हम,
अपने शूरवीरों को संबल दें,
जो हमें बचाने को हैं सरहद पर,
उनको अपने एका से मनोबल दें,
दुश्मन को न हम कोई मौका दें,
उसे अपनी अंदरूनी एकता दिखलाने का,
आज यह वक़्त है साथ आने का,
अपने सभी मतभेद भुलाने का।
जय हिंद जय भारत 🇮🇳🇮🇳
क़ैसर रज़ा-
" मज़दूर"
बना देते हैं, आलीशान महल और आशियाने,
थके हारे मज़दूरों का अपना मकां नहीं होता,
खड़े होते हैं हर रोज़, उम्मीद से लेबर चौक पर,
हर रोज़ की मशक्क़त में, रोज़ी का निशां नहीं होता।
होती है तो सिर्फ़, थकान, भूख, ग़ैरत और मुफ़लिसी,
हिकारत भरी नज़रें और हर दिन की बेबसी,
वो बनाते हैं फैक्ट्री, स्टेशन, हॉस्पिटल और फुटपाथ,
कभी बुनते हैं कपड़े, पर ख़ुद का बदन ढका नहीं होता,
अफ़सोस! थके हारे मज़दूरों का अपना मकां नहीं होता।।-
"मेरे अंगने में"
बुलबुल भी आई,
तोता भी आया,
तीतर बटेर ने भी दाना खाया,
गौरैया फुदकी,
कबूतर भी घूमा,
मोर ने अपना दिव्य रूप दिखाया,
मैना भी बोली,
सेमल की बोली,
दांव अपना गिलहरी ने भी आज़माया,
मालती की चटकी,
कलिया हैं महकी,
गुलमोहर ने सिंदूरी यौवन सजाया,
अभी पारिजात पर,
पतझड़ हो चाहे,
मेहंदी ने है अभी मोर्चा जमाया,
मेरी बगिया में,
खुशियां हैं बस्ती,
मेरे अंगने में इंद्रलोक की छाया।-
"औक़त"
मुझे लगा कि तुम हो थोड़े अलग,
अपना समझ, मैं दर्द-ए-दिल बता बैठा,
तुमने भी जब कोई कसर न छोड़ी,
हाय मैं इक, नया ज़ख़्म लगा बैठा।
बेहतर है कि अब मैं ख़ामोश रहूं,
ग़म अपने छुपा लूं हंस कर के,
पर कैसे कहूं कि सब चंगा है,
जब पहले ही तुझे, हाल-ए-दिल सुना बैठा,
मुझे है अफ़सोस कि ओ ज़ालिम!
अब मैं यक़ीन का शरफ़ गंवा बैठा।
तू भी तो है उस महफ़िल का,
क्यों मैं तुझे अपना यार बना बैठा,
मैं हूं पानी का इक छोटा क़तरा,
जाने क्यों सूरज से लाड लड़ा बैठा,
फ़र्क़ से बहुत फ़र्क़ पड़ता है,
क्यों मैं अपनी औक़ात भुला बैठा।।
क़ैसर रज़ा
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"चीखती खामोशी"
जो कल रचने को आई थी, वो तेरी वादी में आज उजड़ बैठी,
देख ले ऐ मोहसिन आवाम! तेरी ख़ामोशी क्या ग़ज़ब कर बैठी।-
"आशुफ़्ता"
दिल क़ैद भी है,
आज़ाद भी है,
कुछ रचा बसा,
कुछ बर्बाद भी है,
कोमल शबनम की बूंदों में,
एक धधकती आग भी है,
ढलकते अश्क़ों के साए में,
थोड़ा ग़मज़दा, थोड़ा शाद भी है।
आशुफ़्ता = Confused
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"ख़ता-पज़ीर"
मुझे कोई उम्मीद न थी,
तुमने ही तो, जतलाया था मुझे,
कि तुम रहोगे सदा साथ,
यह अहसास करवाया था मुझे,
जब सब छोड़ कर, बेपनाह हो,
तेरी पनाह को आया मैं सनम,
मुझको अनजाना बता, पल भर में ही,
अपनी महफ़िल से भगाया था मुझे,
अब क्या कोई अफ़सोस करें,
और भला, क्या करें कोई शिकवा तुझसे,
शायद अपनी किसी आदत के तहत,
तूने पल भर को, अपनाया था मुझे।-
"फ़ुर्सत"
मैं सोचता हूं कि कभी फ़ुर्सत में, ख़ुद से, फ़ुर्सत से मिलूं,
और इस निगोड़ी फ़ुर्सत को ही, मेरे लिए, कोई फ़ुर्सत ही नहीं।-
सभी को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं💐💐।
"रामराज्य"
फिर मर्यादा जागेगी, न्याय भी पैर पसारेगा,
दुराचारी का आसुरी रूप, त्राहि माम पुकारेगा,
प्रत्यंचा पर दुष्भाव भेदी, वाण अब हुंकारेगा,
गरिमा रखी जायेगी और समभाव रूप निखारेगा,
शबरी को मान मिलेगा अब, खेवट पूछा जाएगा,
तुम आओगे, तो निर्बल पर कोई हाथ नहीं उठाएगा,
मंथरा अपनी बात रखेगी, कैकयी का मान भी न जाएगा,
चारों और दीप जलेंगे, हृदय हर जन का हर्षाएगा,
त्रेता को तुम तार चुके हो, कलयुग कब तारा जाएगा?
हे राम! हम तुम्हारे अभिलाषी हैं, रामराज्य कब आएगा?-