"रहमत"
एक बूंद की ख्वाहिश थी हमको,
तूने तो बरखा की लड़ी ही कर डाली,
अभी दुआ को यह हाथ उठे भी न थे,
दाता! तेरी नेमत ने यह झोली भर डाली।-
"सूखा असाढ़"
चहुं दिसा में नेहा बरसे,
कहीं तो बरसे बदरा फाड़,
मेरा नगर क्यों सूखा ओ मौला!
यूं बूंद बूंद तरसाए काहे असाढ़।-
"एप्पल का फोन"
आज तत्काल से टिकट लेना पड़ा,
और स्लीपर कोच में सफ़र करना पड़ा,
साथ की सवारियों में कुछ कारीगर थे,
कुछ स्टूडेंट्स थे और कुछ खाली भर थे,
चार्जिंग प्वाइंट को हम बारी बारी कर रहे थे ऑन,
मेरा था विवो का और सबका था एप्पल का फोन,
मैं उनकी रईसी देख कर, थोड़ा सा मुस्कुराया,
जल्दी से, बिना चार्ज विवो को, अपनी जेब में छुपाया।
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"ऐतबार"
जीने की तैयारी तो हमने, सौ साल की कर ली,
दरअसल, किसी एक पल का भी हमें, ऐतबार नहीं।
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"कमी"
वही हवा, वही चांदनी,
वही भटकती रात है,
पर तू नहीं, तो कुछ भी नहीं,
तेरे होने से, अलग ही बात है।।-
"होस्टल का कमरा"
माँ-बाप से जुदा होकर, वो वहाँ तन्हा रहता है,
होस्टल का हर कमरा, एक किस्सा कहता है,
कहानियां रोती रातों की, रतजग्गों की, खुराफातों की,
धीरे धीरे वो संभलता है, आत्मनिर्भर बनता है,
होस्टल का हर कमरा, एक किस्सा कहता है।
बाथरूम की पंक्तियां, लाइब्रेरी की संगतियाँ,
रात को कैंटीन की चाय, धमाल देखो, जब भारत जीत जाए,
उज्ज्वल भविष्य के लिए, बनता बिखरता रहता है,
होस्टल का हर कमरा, एक किस्सा कहता है।-
"अलविदा"
दूर दराज़ और पास से आए,
कई पाखी, कुछ पल का डेरा, बसाने को,
कुछ इल्म की तलब थी दिल में तुम्हारे,
कुछ तुम भी लाए थे, हमें सिखाने को,
अब अनक़रीब, गजर अलविदा का,
सुगबुगा रहा है, हूक उठाने को,
जाओ, उड़ो, तुम पंख पसारो,
परवाज़ भरो, क्षितिज को पाने को,
याद रहे, कि यह भी घर है तुम्हारा,
कहीं भूल न जाना, हमसे मिलने आने को।
Farewell to the Outgoing Batches.
Good luck for the future endeavours.-
"उड़ जाओ"
पंख पसारे उड़ने को,
तैयार चिरैया बैठी है,
जिस डाल पर थे कल हमजोली
उसने नभ की खिड़की खोली,
अब अम्बर पर छा जाने को,
इक ऊंची परवाज़ उठाने को,
बेक़रार चिरैया बैठी है,
जो कल ही थी, बेज़ार कहीं,
छुप जाती थी, जब सबा चली,
वो आज हवा के रुख के उलट,
जोखिम नए उठाने को,
नए आयाम बनाने को,
तैयार चिरैया बैठी है।।-
"जंग नहीं चाहिए"
मीडिया के भाई-बंधु तो,
TRP की खाते हैं,
आज अफ़वाह उड़ाते हैं,
कल माफ़ी की रील चलाते हैं।
पर मेरे हमवतनों तुम क्यों,
झूठी बात फैलाते हो,
क्यों लड़ाई-जंग की बातों से,
यूं आनंदित हो जाते हो।
सरहद के गांवों में,
ख़ून की और हमें,
गंध नहीं चाहिए,
दुश्मन को हमने,
सबक़ सीखाना है मगर,
हमें यह जंग नहीं चाहिए।।
हमें और जंग नहीं चाहिए।-
"हम साथ हैं"
यह वक़्त है साथ आ जाने का,
अपने सभी मतभेद भुलाने का..
तू ऐसा है, मैं वैसा हूं,
यह राग द्वेष मिटाने का,
मेरे हरे का भी मान रहे,
तेरे भगवे की भी शान रहे,
दोनों को साथ में लाने का,
मिल तिरंगा ऊंचा फहराने का,
यह वक़्त है साथ आने का
अपने सभी मतभेद भुलाने का..
आ कंधे से कंधा मिला हम,
अपने शूरवीरों को संबल दें,
जो हमें बचाने को हैं सरहद पर,
उनको अपने एका से मनोबल दें,
दुश्मन को न हम कोई मौका दें,
उसे अपनी अंदरूनी एकता दिखलाने का,
आज यह वक़्त है साथ आने का,
अपने सभी मतभेद भुलाने का।
जय हिंद जय भारत 🇮🇳🇮🇳
क़ैसर रज़ा-