एक किनारे से उठती है, दुसरे पर सिमटती है
एक लहर तुम्हारे यादों की हरदम बहती रहती है।
श्रृंग हर्ष सा,गर्त रंज सा, भाव जगती रहती है
ख्वाब हवा के झोके जैसी, हरदम चलती रहती है।-
🏠"कला कृति शिक्षा से इतिहास जिसका जिन्द है
प्रयाग बनारस मध्य बसा, घर हमारा ... read more
जग में कुछ अब रास ना लागे
तुझ बिन मुझे कुछ खास ना लागे।
किस बिरह मे मुझको छोड़ गये हो
पल भर की घड़ी अब साल है लागे।
हर राह डगर अब ताक रही हूँ
किस राह से आओ आस है लागे।
दिन रात तुम्हारे खयाल है आते
पूरा गोकुल सुनसान है लागे।
लौट कर अब तुम आओगे नहीं
ये बात दिलो- जान में है साजे।
फिर भी आकर कह दे कोई
कृष्ण लौट कर आन है लागे।
कोई भरम मिटा दें कह कर
बस यही मन में एहसास है जागे।
जग में कुछ अब रास ना लागे
तुझ बिन मुझे कुछ खास ना लागे।-
तेरा रंग मुझपे चढ़ा ऐसे है, कोई और रंग अब मुझको भाता नहीं।
अब तो नीरस पड़ा है चेहरा मेरा, तू गली में क्यूँ अब नजर आता नहीं।
रंग लाल गुलाल सब फिके पड़े, तेरे प्यार का रंग मुझसे जाता नहीं।
कैसे खेलू मैं होली माधव बीन तेरे, किसी और के हाथ का रंग मुझे भाता नहीं।-
तुम्हारे न दिखने का,
मुझपे कुछ ऐसा असर है।
जैसे होली की शाम,
सुनसान पूरा शहर है।-
आदि, अनन्त,अविरल उपकारी
है इतने भोले, मेरे भोलेभंडारी।
जब 'प्रेम' से कोई नाम पुकारे
उसके हो जाते हैं , मेरे त्रिपुरारी।-
सब्र बरस जाये याद करते करते
सावन नहीं आये इंतजार करते करते
सम्भलें कैसे घटा जब बहार पवन बहके
हो जाये मिलन सहसा मनुहार करते करते।-
समन्दर हो जैसे मध्य में, सौम्य इतना हूँ
किनारो पर लहरों के 'शोर' जितना हूँ।
समझते हैं लोग मुझे, कठोर कितना हूँ
बन्द कमरे को पता है मैं मोम कितना हूँ।-
परिन्दों सा 'मन' ठहरता नही है
सुकून भी जहन में पसरता नहीं है।
क्या शौक पाले सफ़र जिंदगी में
मन भी कहीं अब बहलता नहीं है।-
कृष्ण कृष्ण का जाप करूँ मैं, कृष्ण हैं मेरे साथी
रग-रग में मेरे कृष्ण समाये, मैं हूँ उनकी दासी।
कोई जशोदा नाम पुकारे, कोई राजकुमारी
मै मीरा बन जोगन फिरती, अपने कृष्ण की दासी।
ना भाये मुझे सुख महलों का, ना मैं महारानी
मैं दिवानी कृष्ण प्रेम की, प्रेम ही मेरी कहानी।
कोई मुझे ध्रुत नारी कहता, कोई अबला नारी
हरदम कृष्ण साथ है मेरे, मैं कृष्ण की दिवानी।
ना चाहत मुझे धन-दौलत, ना बन्धन को मैं राजी
बांध चूकी कृष्ण से बन्धन,मैं उनकी प्रेम की दासी।
कृष्ण कृष्ण का जाप करूँ मैं, कृष्ण हैं मेरे साथी
रग-रग में मेरे कृष्ण समाये, मैं हूँ उनकी दासी ।-
रुखा सा दिन और रातों को खास मान रखा हूँ,
आये जो तू ख्वाबों में वही मुलाक़ात मान रखा हूँ।
हकीकत और ख्वाबों में अब फर्क नहीं करता हूँ,
कहीं न कहीं ख्वाबों में तुम्हारा साथ पा रखा हूँ।
तुम्हें अपने ख्वाबों का हकदार मान रखा हूँ,
मेरी नज़र में, मैं यही मुलाकात मान रखा हूँ।-