फुहार से तरबतर हुई रंग की रुत फाग है वो
सुरभित तन से लगता है, फूलों सा शबाब है वो
चंपई सुबहो में उदित होता आफ़ताब है वो
संदली शाम में खिलता रख़्शंदा माहताब है वो
एसी मिसाल कहां मिले, हसीन से हसीन है वो
हर शै जो लाजवाब है उनमे लाजवाब है वो
अल्फाज भी कम पडेंगे और क्या कहूं क्या है वो,
जो देखा था वो मुकम्मल हुआ हसीन ख्वाब है वो
कितना खुशनसीब हूं मैं,हर पल दस्तियाब है वो
उसका मेरा बन जाना सचमुच में, सवाब है वो
"गिरि कैलाश"-
"हरफनमौला"
मैं खुद मिरा रकीब बनता जा रहा हूँ,
उसे "ये वाला मैं " पसंद आ रहा हूँ!-
ख्वाब यह है इक रोज उन्हें बे पर्दा देखा जाए,
मगर डर हमें यह है कही बीनाई न चली जाए.....
"गिरी कैलाश"
बीनाई=आंखो की रोशनी-
अपनी धुन में मस्त मगन रहे वो कलंदर हूं मैं,
अपने खयालो में खोया हुआ गहरा समंदर हूं मैं,
ताउम्र साहिल की खोज में लगा इक बवंडर हूं मैं,
सिर्फ शख्सियत से दिल जीत ले वो सिकंदर हूं मैं
"गिरि कैलास"
ताउम्र-lifetime कलंदर-फकीर, बवंडर=तुफान
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वो शबनम भी मोती बन जाए अगर,
जो तेरी जुल्फ से होके तेरे बदन पे गिरे!!!
"गिरि कैलाश"-
बनारस का घाट हूं मैं....
मुझे छूने के लिए... तुम्हें गंगा होना होगा...
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पहले कमी थी सिर्फ She की,अब बोलता है D,
चारागर तु युं कर, रिपोर्ट में पुरी ABCD लीख दे!!!
" गिरि कैलाश "-
ये और बात है कि ज़ुदा है मेरी नमाज़
अल्लाह जानता है कि काफ़िर नहीं हूँ मैं
【 Rajesh Reddy】-