हमारे साथ जो चल रहे हैं सल्तनत में बैठे लोग भी अपने हाथ मल रहे हैं
हम निकल पड़े हैं अपनी राह, बड़े बड़े लोग अपनी औकात में चल रहे हैं
मैं अकेला नहीं हूं अपने हक की जिज्ञासा में, हक जताने वाले भी घर से निकल रहे हैं
अपने लिए मैं कुछ मांग नहीं रहा, तेरे हाथ में है इसलिए मेरे सिक्के चल रहे हैं
साहिब-ए-मसनद से मेरा सवाल है, तेरे कितने हादसे मेरी वजह से टल रहे हैं
फिर भी तेरे खजाने से मेरे लिए, तेरे तरकश के तीर नहीं निकल रहे हैं
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