कैलाश चन्द साहू   (कनक)
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Joined 24 March 2019


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Joined 24 March 2019

अब सियाहा रात जाने आज ढलनी चाहिए
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।।

रात तन्हा बेखुदी में फ़ायदा क्या कर हुआ
मेरी धड़कन बीच की मिनार ढहनी चाहिए।।

बढ़ चली है हिरासत स्याह खुद के जुल्म की
हद हो गयी है अब तो मूरत बदलनी चाहिए।।

जो भी करना आज तुम भी तो ज़रा भी समझ लो
आज तो हालात सबकी वो सुधरनी चाहिए।।

दे रहा है ख़्वाब अच्छा फिर ज़माना था यहां
जितने ज्यादा लोग कहते आग बुझनी चाहिए।।

आज ख्वाबों में जवाबो आग जलनी चाहिए
बहती गंगा से अभी भी धार मिलनी चाहिए।।

कनक

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बने ना मजबुरी चलते रहे हम
नए ख्वाब दिल में सजाते रहे हम।।

चले हम फ़िदा हो के उत्थान हो पर
अभी जिंदगी भर निभाते रहे हम।।

किसी पर भरोसा किया था कि लेकिन
उन्हे याद अब तक दिलाते रहे हम।।

अश्क मर गए हैं हमारी भी आंखो
जमाने को सपना दिखाते रहे हम।।

उन्हे तो हमेशा बुलाते रहे हम
चिराग ऐ मोहब्बत जलाते रहें हम।।

अकेले अकेले निभाते रहे हम
अब तलक हकीकत निभाते रहे हम।।

कभी भी कहीं भी किसी को भुला कर
गरीबों पे दिल जां लुटाते रहे हम।।

कनक

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दर्द दिल में छुपा कर निसार आदमी
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी।।

जिंदगी में सदा खुश रहा फिर वफ़ा
यूं भरोसा नहीं फिर शुमार आदमी।।

बाते उसकी कभी भी गले से लगा
आजकल शौक भी हैं खुमार आदमी।।

राह मुश्किल तुझे क्या हुआ आजकल
मौत भी है खुदा की मजार आदमी।।

भूलकर भी नहीं कर रहा प्यार है
इश्क में क्या मिला दिल करार आदमी।।

जान जोखिम भरी है नशा देखिए
रास्ता है वहीं सब शिकार आदमी।।

रात तन्हा हुई बेखुदी भी यहां
जिंदगी में कभी दिल शुमार आदमी।।

कनक

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गैरत में खामखां जिंदा आफताब शायद
गाफिल है जिदंगी को गम बे हिसाब शायद।।

शतरंज का खिलाड़ी धड़कन पे भी अंधेरा
नज़रों से दे दिया था जिसने पयाम शायद।।

वो देह चाह रखकर कब से बताए नेकी
उसको संकू ने देगा जिसका हिजाब शायद।।

क्या घात है मिला दिल लगता हैं तीरगी से
जिन्दो में आज भी हैं अपनी किताब शायद।।

बहक् कर जो चला था मतलब से आज यारों
कुछ पल में जिंदगी के बारे में ख़्वाब शायद।।

कनक

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जाम आंखों से पिलाया है जलाने के लिए
इक तबस्सुम जो था दुनियां को दिखाने के लिए।।

खासकर जब भी हमारा दिल खपा रहता कभी
ज़ख्म अपनो को दिखाता हूं गिनाने के लिए।।

यूं निभाए हैं वहां पर भूलकर के साथ में
अश्क आंखों से पिलाया है जलाने के लिए।।

राह चलते यूं कभी भी यार दीवानों चले
दर्द पलता यार सीने में भुलाने के लिए।।

चोट खाकर घर बचाया था ज़माने से यहां
खून के आंसू भी बहते गम दिखाने के लिए।।

राज दिल का एक तमगा था लुभाना था नहीं
जलजला देखो दिखाया कब बताने के लिए।।

कनक

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#मुकद्दर

पांव के छाले जलते रहें मुकद्दर में था चलते रहे
वो मिले ना मिले पर हमारे घर धूं धूं जलते रहें
मिलना बिछड़ना सब किस्मत का खेल है यारो
मुहब्बत की आड़ में सांप के सपोले छलते रहे।।

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तड़फ तड़फ कर रोता है
ना सोता है ना रोता है
बस खोता है खोता है
ना जानें क्यूं कुछ कुछ होता है।।

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मेरी तहरीर में तू छुपी हैं कहां
तेरे दामन में माना खुशी है कहां ।।

खामखां दिल दिवाना है यारो मगर
मुस्कुराता हुआ आदमी हैं कहां ।।

बेबसी है यहां हर तरफ यूं नमी
आजकल देख लो यूं हंसी हैं कहां ।।

रात भर हम सभी यूं खपा थे मगर
जिंदगी देखो सदा रौशनी हैं कहां ।।

अब दुआ के लिए कमी क्या है मगर
मेरे हाथो जमीं दर भली हैं कहां।।

देखना है यहां आपसा कौन है
काम करके मगर बेखुदी है कहां।।

ख्वाब शायद न ही देखा हमने
मेरी आंखों में रौशनी हैं कहां।।

दूर तक हम जुदा क्यों रहे अब तलक
सच दिखाना हमे जिंदगी है कहां।।

कनक

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उस की जुल्फो के सब असीर हुए
कोई दमदार कोई कबीर हुए।।

उस की जुल्फो के सब असीर हुए
कोई रसखान कोई कबीर हुए।।

ख़्वाब जिनके लिए वही असल
उस की जुल्फो के सब असीर हुए।।

सब बहाने से नही अमीर हुए
ख्वाब ए रब बना जमीर हुए।।

ना कभी यूं किसी जवाब दिया
मरते दम तक चले अमीर हुए।।

वो हम सफर हये कि हीर कहे
सब किसी और के जमीर हुए।।

एक। समन्दर ने कहा कि वजह
सात समंदर पार वजीर हुए।।

कल थे गरीब वही अमीर हुए
उस की राहों मे चल फकीर हुए।।

दोस्ती में सभी दगा बाज है
जो चले थे वही अमीर हुए।।

कनक

असीर बंदी कैदी

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उस की जुल्फो के सब असीर हुए
कोई दमदार कोई कबीर हुए।।

ख़्वाब जिनके लिए वही असल
उस की जुल्फो के सब असीर हुए।।

सब बहाने से नही अमीर हुए
ख्वाब ए रब बना जमीर हुए।।

ना कभी यूं किसी जवाब दिया
मरते दम तक चले अमीर हुए।।

वो हम सफर हये कि हीर कहे
सब किसी और के जमीर हुए।।

एक। समन्दर ने कहा कि वजह
सात समंदर पार वजीर हुए।।

कल थे गरीब वही अमीर हुए
उस की राहों मे चल फकीर हुए।।

दोस्ती में सभी दगा बाज है
जो चले थे वही अमीर हुए।।

कनक

असीर बंदी कैदी

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